Tuesday 11 December 2012

आदतें........

कभी - कभी कुछ मजबूरियाँ आदत बन जाती हैं !
हम समझ ही नहीं पाते, कब वो इबादत बन जाती हैं !!
दर्द तब होता है यारो, जब दुआ भी बददुआ बन जाती हैं !
ज़िन्दगी भी एक कोलाहल है यारो,
यहाँ तो शक्लें भी बेअकल हो जातीं हैं !!
ज़माने लग जाते है एक रिश्ते को बनाने में,
ये आदतें भी कभी - कभी बुरी बन जाती हैं !!!!!!!!


          जितेन्द्र सिंह बघेल 
       11th दिसम्बर 2012

1 comment:

  1. Really Nice One......
    http://www.ashishupdates.blogspot.in/

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।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...