Thursday 4 September 2014

रहमतों की फितरत !!!!

आसाँ नहीं है ज़िन्दगी, जिन्दादिलों की !
हर मोड़ पे एक, आदमखोर बैठा है !!
गुस्ताखियों से तो, आदत है बात करने की !
कोई गुस्ताख़ मेरे ताक में जो बैठा है !!
रहमतों की तो फितरत है, मुझे भूल जाने की !
कोई है जो, दुआओं में बात करता है !! 
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
4th सितम्बर 2014

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...