Monday 28 January 2013

जीवन का सच !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !!

सच बोलो तो बुरे बनो, फिर लोग कहें क्यों सच बोलो !
सच का मतलब समझो यारों, फिर तभी कहो की सच बोलो !!



कुछ सच मानो पछतावे से, जिनके कहने से दर्द हुआ !
तो बंद करो पछताना अब, जो बोल दिया तो बोल दिया !!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !!


हर शख्स यहाँ पे झूँठा है, हर चेहरे मानो नकली है !
जीवन की करवट ऐसी है, की मानो एक पहेली है !!

ये सच भी कितना कड़वा है, सारे रिश्तों को तोड़ दिया !
है लानत ऐसे सच में भी, जिसने रश्मों को तोड़ दिया !!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !
!


जितेन्द्र सिंह बघेल

28th जनवरी 2013

Thursday 24 January 2013

हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !!

 हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !
 राहें भी गुमनाम हुई, तेरे मंजिल तक आने की !!

लब काँप रहे, मन भाँप रहे, दिल करता है अपने मन की !
हैरान रहूँ, बेचैन रहूँ, बातें सुनता मन से मन की !!

कुछ रोज लगे बीते बीते, पर बात नहीं अफ़साने की !
ये दिल भी पागल न समझे, जो बात नहीं समझाने की !!

अब टीस सी दिल में उठती है, उसके कोमल स्पर्शों की !
धड़कन भी मुझे डराती हैं, कहती हैं बारी जाने की !!

 हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !
 राहें भी गुमनाम हुई, तेरे मंजिल तक आने की !!



जितेन्द्र सिंह बघेल
25th जनवरी 2013

Tuesday 22 January 2013

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू !!!!!!!

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू ,
तेरे रहमों करम से मैं, घबरा गया !!

रह सकूँ गर तेरे दायरे में जो मैं,
खुद के साये से भी मैं तो घबरा गया !!

मेरे अपनों को अपना कहूँ जब भी मैं,
मेरा अपना कोई याद आता गया !!

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू ,
तेरे रहमों करम से मैं, घबरा गया !!





जितेन्द्र सिंह बघेल
23 rd जनवरी 2013

Monday 21 January 2013

ये लोग दीवाने कैसे हैं

नज़रों से ओझल होते ही, पलकों के अन्दर होते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

सारे वादों से दूर गया, फिर यादों में क्यों आते हैं !
आँखों के निर्झर झरने में, वो अंतर्मन को धोतें हैं !!

उनकी दुनिया अब अलग हुई, फिर धड़कन में क्यों बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी यादों के पहलू कुछ, क्यों आज मुझी पे हँसते हैं !
तेरी किस्मत में यार नहीं, सब यही बोल के हँसते हैं !!

हैं मगर ऩाज खुद में मुझको, वो मेरे दिल में बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी इच्छाएं मरी नहीं, बस आत्मशुद्धि ही करते हैं !
ये जीवन भी क्षणभंगुर है, सब मरने से ही डरते हैं !!

सारे बंधन से मुक्त रहूँ, बस यही जतन हम करते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !
!




                                     जितेन्द्र सिंह बघेल 

                                             22 nd जनवरी 2013

Saturday 19 January 2013

यादों का मौसम

कुछ लम्हे हूँ जिया हुआ,  जिनकी यादें तडपाती हैं !
है बीते पल में जिंदा वो, बस यही याद कहलाती है !!

यादों का मौसम कैसा है, जो दूर कभी ना जाता है !
जब याद उसे मैं करता हूँ, मन दूर तलक यूँ जाता है !!

है बेबस सा लाचार बड़ा, मन को यादें समझाती हैं !
एक आश बची है मन में क्यों, आँखें  नम सी  हो जाती हैं !!

कुछ लम्हे हूँ जिया हुआ,  जिनकी यादें तडपाती हैं !
है बीते पल में जिंदा वो, बस यही याद कहलाती है !!



             जितेन्द्र सिंह बघेल 
            19 January 2013

Thursday 17 January 2013

तेरी यादें

मिलूं मैं गर जो राहों में, छुपा लेना खुदी को तुम !

मुझे मालुम है ये की, तड़प के रो पडोगी तुम !!

तेरी यादें भी आती हैं, बड़ी सिद्धत से यूँ जाना !

तुम्हे बतलाऊं मैं कैसे, उन्ही से लड़ पडोगी तुम !!

  

                                     जितेन्द्र सिंह बघेल  

                                      17 January 2013

 

Wednesday 9 January 2013

हकीकत की बयाँबाजी

कभी फ़ुरसत से पढना तुम, मेरी आँखों के अश्कों को !
जिन्हें लाये बिना आँखें, मेरी अब सो नहीं पाती !!

कभी ख्वाबों में आऊं तो, समझ लेना बुरा सपना !
हकीकत की बयाँबाजी, ये आँखें कह नहीं पाती !!

मुझे बाँधा है कसमों से, न जाने किस बहाने से !
मेरी हर बात भी अब तो, उसे समझा नहीं पाती !!

जितेन्द्र सिंह बघेल 

9th  जनवरी 2013

Wednesday 2 January 2013

ये रात बड़ी जहरी लगती

ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
ये सफ़र रात का लगता है, जैसे बिन पानी का सागर !
हर रात उसी में डूबे मन, पिछली सुध में खुद को पाकर !!
ये सफ़र रात का खोता है, कब आँख मेरी लग जातीं है !
जब सुबह में खुद को पाता हूँ, तब आँख मेरी भर आतीं हैं !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
है गुजर रहा जीवन ऐसे, जैसे जीना मजबूरी है !
है बात करूं कितनी उसकी, हर बातें अभी अधूरी हैं !!
हर हाल में तुझको जीना है, बस यही बात तडपाती है !
जाते - जाते वो यही कही, यह बात समझ नहीं आती है !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!


     जितेन्द्र सिंह बघेल   

2nd जनवरी 2013



।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...