Tuesday 9 October 2012

तेरी चाहत !!!!

तेरी चाहत बनी राहत,  मेरे वीरान मंजर की !
तेरा आना मुकद्दर में,  यूँ ही किस्मत नहीं होती !!


 

अभी तक सोंचता हूँ मैं, सभी बातें मोहब्बत की !
तू मुझसे दूर है कहना, मेरी हिम्मत नहीं होती !!
खुदी से कहकहे कहना, मेरी आदत है रातों की !
मेरी साँसे भी अब जाना, मुसलसल भी नही होती !!

            
                  जितेन्द्र सिंह बघेल 
                   09 सितम्बर 2012

Friday 5 October 2012

मेरी उलफतें !!!!!

न जाने उलफतें भी अब, मुझे तड़पा नहीं पातीं !
उन्हें अफ़सोस होता है, मुझे समझा नहीं पाती !!
मैं बुजदिल भी नहीं हूँ ये, उन्हें समझा नहीं सकता !
उन्ही का हो चूका हूँ मैं, मुझे बतला नहीं पाती !!
कोई हमदर्द था मेरा, यही एहसान है उनका !
मेरी उलफत बेगानी हैं, मुझे अपना नहीं पातीं !!

                 !! जितेंद्र  सिंह बघेल !!
                        5th  सितम्बर 

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...