Friday 11 May 2012

तू जैसी थी वैसी आज भी है,
मेरा हर रोम तेरा मोहताज़ आज भी है !!
कभी भटका जो राहों में, तो रुखसत होती है यूँ, 
पलट के कहती है मुझसे , तू बच्चा आज भी क्यों  है !!
मेरी हर सांस कहती है, माँ तू जाना ना  दूर,
करूँ  कैसे मैं  शिकवा, मेरा अरमान तू ही है !!
तेरे आँचल की छाया में, मैं सोना  चाहता हूँ अब,
तुझे समझाऊं कैसे मैं, मेरा जहां तू ही है !!
जिया हर पल को मैंने यूँ ,
लगा तेरा हाथ सर पे है ,
तुझे बतलाऊं कैसे मैं , तू जैसी थी वैसी है !!
                    -जितेंद्र सिंह बघेल 
                       "12 मई 2012"
इस ब्रहमांड की सभी पूजनीय माताओं को मेरा चरण स्पर्श प्रणाम...

3 comments:

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...