बड़ी सर्द थी दीवानगी उनकी, मैं मग़रूर था समझा नहीं !
ज़िल्लतों के दौर में पड़ा रहा, खुद को संभाला नहीं !!
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सन्नाटे मुझे कहते हैं मेरी सुन,
उनसे कौन कहे, हम दीवाने हैं समझते नहीं !
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अब तो खुद की ख़ामोशी भी कर गयी मोहब्बत मुझसे,
बस गुम हूँ उसकी यादों में, निकल पाना मुमकिन नहीं !!
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
30th अगस्त 2014