Thursday 26 April 2018

॥ ऐ ज़िंदगी ॥

ये ज़िंदगी, तू इतने कह कहे क्यों लगा रखी है,
तुझे बर्दाश्त नहीं, तुझसे रोज लड़ना झगड़ना मेरा !

कभी तू भी, दे दिया कर तवज्जो किसी काम का,
हर वक्त, हर दम बस एक नया पंगा होता है तेरा !!

तुझसे मोहब्बत तो नहीं हो सकती ये यकीन है,
हाँ, नफ़रत के क़ाबिल भी तो नहीं मिज़ाज तेरा !!

          जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
               (वाराणसी यात्रा )
              26th अप्रैल 2018

Tuesday 24 April 2018

॥ कुछ रंगना चाहूँ ॥


कुछ रंगों से रंगना चाहूँ, कुछ रंगहीन सम्बन्धों को !
कुछ निर्मल जल लेना चाहूँ, धुलने को मैले चेहरों को !!

मर्यादित और प्रखर भी हूँ, हैं कई द्वंद्व बस कहने को !
हर व्यक्ति यहाँ क्यूँ बेबस है, है जीता बस है खाने को !!

व्यथा कहूँ या व्यथा सुनूँ, कोई खड़ा नहीं कह सुनने को! है मर्म बहुत ही मलिन मेरा, कोई लफ्ज़ नहीं अब कहने को !!

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   25th अप्रैल 2018

Friday 20 April 2018

॥ वक्त ॥

बहुत सुलझा दिया है, वक्त ने हरकतें कर करके,
वरना एक वक्त था, की सारा वक्त गुजरता था हरकतों में !

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   20th अप्रैल 2018

Wednesday 4 April 2018

तज़ुर्बा

मैं ग़मों को बेवकूफ़ बनाना सीख लिया, कहीं ऐसा तो नहीं की ज़िंदगी का तज़ुर्बा सीख लिया ! था बदतर अब बेहतर हो लिया, लगता है सच और झूँठ का अंतर समझ लिया !!

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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   5th अप्रैल 2018

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...