मेरे जहन में रहने का, शुक्रिया कहूँ तुझे कैसे !
तू तो मरहम है मेरे हर जख्म का,
तुझसे दूर रह सकूँ कैसे !!
मेरी दुनिया से जाने का, गिला भी कर सकूँ कैसे !
मोहब्बत कर गया तुझसे,
अभी तक जी रहा कैसे !!
मेरे हर साँस में बसना, तेरी फितरत बनी कैसे !
नहीं कुछ मांग पाया मैं,
मोहब्बत से - मोहब्बत से !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
30 अगस्त 2012
तू तो मरहम है मेरे हर जख्म का,
तुझसे दूर रह सकूँ कैसे !!
मेरी दुनिया से जाने का, गिला भी कर सकूँ कैसे !
मोहब्बत कर गया तुझसे,
अभी तक जी रहा कैसे !!
मेरे हर साँस में बसना, तेरी फितरत बनी कैसे !
नहीं कुछ मांग पाया मैं,
मोहब्बत से - मोहब्बत से !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
30 अगस्त 2012