Thursday 30 August 2012

जख्म का मरहम !!!!

मेरे जहन में रहने का, शुक्रिया कहूँ तुझे कैसे !
तू तो मरहम है मेरे हर जख्म का,
तुझसे दूर रह सकूँ कैसे !!
मेरी दुनिया से जाने का, गिला भी कर सकूँ  कैसे !
मोहब्बत कर गया तुझसे,
अभी तक जी रहा कैसे !!
मेरे हर साँस में बसना, तेरी फितरत बनी कैसे !
नहीं कुछ मांग पाया मैं,
मोहब्बत से - मोहब्बत से !!

    जितेन्द्र सिंह बघेल
    30 अगस्त 2012

Friday 17 August 2012

गुनाहों की सजा !!!!

 मुझे  चुपके से यूँ, छूना तेरा, क्यों याद आता  है !
न जाने किन की बाहें अब,  तुझे थामे हुए होंगी !!
कभी फिरदौस था मेरा, अभी परवाह करता है !
न जाने किन निगाहों से, उन्हें वो देखती  होंगी  !!
तसब्बुर भी हुआ दुश्मन, नहीं अब याद करता है !
न जाने किस की गलियों में, वो आहें भर रही होंगी !!
वो खुशबू आज भी ये  दिल मेरा, महसूस करता है !
न जाने किस की बाँहों में, वो जा महक रही होंगी !!
ये दिल अब भी मेरा तनहा, मुसाफिर बन के बैठा है !
न जाने किन गुनाहों की,  सजा वो पा  रही होंगी !!
जितेंद्र सिंह बघेल 
१७ अगस्त २०१२

Thursday 16 August 2012

मेरा एहसास !!!!

वो अपने थे कभी, अब तो ये एहसास ही काफी है !
फकत लम्हों में तो, सितारे भी गिर जाया करते हैं !!
हमारी ज़िन्दगी के पन्नो में, दीमक सी लगी है !
हम खामखाँ ही, परायों से डर जाया करते हैं !!
कुछ तनहाइयों ने हमे, अपना जो लिया है !
वरना हम तो खुद के साये से भी, डर जाया करते हैं !!
अभी तो साली ज़िन्दगी भी, पूरी जिंदा है !
हम तो हर रात खुद को यूँ ही मारा करते हैं !!
कभी फुरसत मिले तो आना यारो....
कुछ दर्द भी हैं, जिन्हें हम शौक से सहा करते हैं !!


                   " जितेंद्र सिंह बघेल "
                      १६ अगस्त २०१२

Wednesday 1 August 2012

मन का मनन !!!!

कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
हम जी रहे वो ज़िन्दगी, जिसका नहीं मकसद कोई !
हम ढूढते हैं जख्म क्यों, जिसके खुदी मरहम हैं हम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
है एक तारा आसमां का, जल रहा था  शान से !
फिर आज क्यों तू बुझ गया, क्या लुट गयी तेरी सरम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!

                                        जितेन्द्र सिंह बघेल
                                       "01 अगस्त 2012" 

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...