Wednesday 26 December 2012

हम कौन थे, क्या हो गये हैं

मुझे आज आचार्य चाणक्य का एक सुंदर एवं सत्य कथन बहुत ही जादा विचलित कर रहा है ......

"जिस देश के युवा ये कहते हैं, की हमे राजनीति में कोई रूचि नहीं है, उस देश को भ्रष्टाचार एवं पतन से कोई नही बचा सकता"

आज जरूरत है आचार्य जी के इस सत्य को मान कर उसे चरितार्थ करने की !
मुझे तो दुःख है की सत्ता में बिपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार, अब तक अपने बिपक्ष होने के किसी भी पहलू को पूरा न कर सकी, इस पार्टी की एक ही विचारधारा मुझे अब तक समझ आई है, केवल और केवल भावनात्मक प्रहार करना !
आज इस प्रहार से कहीं जादा जरूरी है, तल्कालीन मुद्दों पे अपनी विचारधारा को मोड़ना एवं तत्कालीन सत्ताधारी सरकार को घेरना, शुरूआती दौर में ये पार्टी ऐसा ही करती है, मगर खुद के दामन के दागों की वजह से मुद्दों से भटक जाती है !
कांग्रेस पार्टी की तो ये पुरानी आदत और नसल है की, जिस समय उन पर कोई भी आरोप लगाओ उसी समय उसी आरोप की  प्रतिलिपि वो आप पर जरूर छाप देती है, ये भी एक विशेषता है इस पार्टी की, जिसकी ही वजह से सायद ये कायम भी है !
यह एक सोंचनीय विषय है की तत्कालीन सरकार निरंतर न्योता दे - दे के घोटाले किये जा रही है, महंगाई बढाये जा रही है, मगर अफ़सोस की दूसरी सबसे मजबूत पार्टी भारतीय जनता पार्टी कुछ नही कर सकी, बाकी क्षेत्रीय दलों की क्या बिसात !

अब तक अटल जी की जगह कोई नहीं ले पाया, अब्दुल कलाम जी को भी सिरे से नकार दिया गया,
वाह रे किस्मत इस देश की, जिनके दामन में खुद भ्रष्टाचार के दाग हैं,
वो ही देश के प्रथम नागरिक, महामहिम राष्ट्रपति के पद पर आसीन हैं !
द्वितीय नागरिक की तो बात ही क्या करूं, वो तो सर्व विदित है, उन्हें तो खुद ही नही पता की मैं कैसे आया हूँ और कैसे चल रहा हूँ और देश को भी कैसे चला रहा हूँ !!

कोटि कोटि नमन है देश के क्रांतिकारियों को जिन्होंने हमे इसे दुसरे देश की गुलामी के चंगुल से छुडा कर अपने ही देश में गुलाम बना दिया !!!
आचार्य मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचना में लिखा है, जो बहुत ही सत्य है, जो ये बता रहा है की किस सोंच की विभूति थे वो महामना ......
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी !
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी !!
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां !
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां !!


                                                              जितेन्द्र सिंह बघेल
                                                               27 दिसम्बर 2012

Tuesday 25 December 2012

ममता का भण्डार

इसके कई रूप हैं,
एक लड़की ....
एक बहेन ....
एक पत्नी ....
एक माँ ....


ममता का भण्डार है तू, कुछ कर्ज चुकाना चाहूँ मैं !
है अंतर्मन भी बड़ा दुखी, कैसे तुझको बतलाऊं मैं !!
तेरे सीने का दर्द मेरे, सीने में कैसे आएगा !
बस यही सोंच में पागल हूँ, कैसे खुद को सुलझाऊं मैं !!



                                             -जितेन्द्र सिंह बघेल
                                             26th दिसम्बर 2012

Wednesday 19 December 2012

परवाह

करोगे बात करने की,  तो कह दूंगा ज़माने से !

मिटा दे ज़िन्दगी मेरी,  नहीं अफ़सोस जाने से !!

लुटा दी आबरू सबने,  जो कहते हैं ज़माने से !

नहीं परवाह करते हैं,  लगे हैं सब बेगाने से !!

 जितेन्द्र सिंह बघेल 
20th दिसम्बर 2012

मेरी फितरत

हैं कशाने खूब पर, जाना मेरी फितरत नहीं !

हूँ मैं नाशाद आज जो, इसका उन्हें तो गम नहीं !!

खस्तगी मेरे जहन की, क्यों उन्हें दिखती नहीं !

कूचे मुझे  मेरे सफ़र की, क्यों मुझे दिखती नहीं !!

खुल्द से कम था नहीं तू, फिर मेरी माना  नहीं !

ये जिस्म अब तनहा बचा है, कुछ भी इसमें है नहीं !!



     जितेन्द्र सिंह बघेल
   19th दिसम्बर 2012

Sunday 16 December 2012

"पाँच बातें "

पाठ - 14
 "पाँच बातें "
कक्षा - 4
1-  हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !




याद आया की नहीं ........हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी 

  जितेन्द्र सिंह बघेल 
17th दिसम्बर 2012

Wednesday 12 December 2012

गम मोहब्बत का !!!!

नहीं डरते ज़माने से, तेरा ये गम ही काफी है !
सुना है गम मोहब्बत का, बड़ा गमगीन होता है !!
डरे रहते हैं हर पल हम, तेरे इस दर्द को लेकर !
सुना है गम जुदाई का, बड़ा संगीन होता है !!
कई रंगों से मिलकर के, बना है गम मोहब्बत का !
सुना है रंग मोहब्बत का, बड़ा रंगीन होता है !!


जितेन्द्र सिंह बघेल 
12th दिसम्बर 2012

मोहब्बत !!!!

मोहब्बत ही तो किया था, अपनी जली ज़िन्दगी को बुझाने को !
उन्होंने भी क्या खूब सिला दिया, कहके, क्या जरूरत थी मेरी ज़िन्दगी में आने को !!
किसी के इश्क की खुशबु, मैं पता था तेरे अन्दर !
खुदी की जिल्लतों में भी, खुदी को डूब जाने को !!
तू हो ही तो  नहीं पाया, तेरा जो था ज़माने में !
यही कहकर जलाया है, मेरे बेबस से अरमाँ को !!

Tuesday 11 December 2012

आदतें........

कभी - कभी कुछ मजबूरियाँ आदत बन जाती हैं !
हम समझ ही नहीं पाते, कब वो इबादत बन जाती हैं !!
दर्द तब होता है यारो, जब दुआ भी बददुआ बन जाती हैं !
ज़िन्दगी भी एक कोलाहल है यारो,
यहाँ तो शक्लें भी बेअकल हो जातीं हैं !!
ज़माने लग जाते है एक रिश्ते को बनाने में,
ये आदतें भी कभी - कभी बुरी बन जाती हैं !!!!!!!!


          जितेन्द्र सिंह बघेल 
       11th दिसम्बर 2012

Monday 10 December 2012

मन का अपराध !!!

कुछ बचा नहीं है करने को, मन में है एक अपराध बोध ! 
है यही सोंच कर मन व्याकुल, जीवन से बड़ा न कोई बोझ !! 
कुछ लोग मिले जीवन में क्यों, हूँ रहा अभी भी यही सोंच ! 
जाना शायद नियति उनकी, है अभी रहा है यही सोंच !! 
हैं बृक्ष बड़े कुछ अम्बर तक, जिनकी सीमा का अंत नहीं !
 ये मन भी लगे कुछ ऐसा ही, जिसकी सीमा का अंत वही !!
 इसकी सीमा में घुस जाना, है लगे मुझे अपराध बड़ा ! 
होके भी न इसका हो पाऊं, इसका बौद्धिक स्तर है बड़ा !! 
जीवन की नित्य निरंतरता, है कहे मुझे कुछ नया सोंच ! 
कैसे बुद्धी को समझाउं, जो मना करे कुछ नहीं सोंच !! 
कुछ बचा नहीं है करने को, मन में है एक अपराध बोध ! 
है यही सोंच कर मन व्याकुल, जीवन से बड़ा न कोई बोझ !! 
                

जितेन्द्र सिंह बघेल 
 10th दिसम्बर 2012

Wednesday 5 December 2012

साहेब !!!!

मेरी बातें भी अब उनको लगे हैं, जुल्म सी साहेब !
मेरा दिल भी बेचारा है, हुआ न अब तलक वाकिफ !!
उन्हें तो आदतें सी  हैं, सनम का दिल जलाने  की !
बेचारी आदतों को अब, कोई समझाये क्या साहेब !!




 जितेन्द्र सिंह बघेल
5th  दिसम्बर 2012 

Friday 23 November 2012

सफ़र जिंदगी का !!!!

ये सफ़र जिंदगी का कटता नहीं क्यों,
न जाने इसे क्यों जिए जा रहे हैं !!
जो  लम्हे सुहाने लगे थे कभी,
जिन्हें भूल जाना मुनासिब नहीं है !!
न पूंछो मेरी ज़िन्दगी के सफ़र को,
कई गलतियों को छुपाये हुए हैं !!










वो गलती गुनाहों सी लगने लगी क्यों,
जिन्हें दिल में अब तक छुपाये हुए हैं !!
ये सफ़र जिंदगी का कटता नहीं क्यों,
न जाने इसे क्यों जिए जा रहे हैं !!

       जितेन्द्र सिंह बघेल 
     24th नवम्बर  2012

Thursday 1 November 2012

स्त्री का दिल !!!!!

स्त्री का दिल इकलौता ऐसा मुल्क है
जहां मैं दाख़िल हो सकता हूं बग़ैर किसी पासपोर्ट के
कोई पुलिसवाला नहीं मांगता
मेरा पहचान-कार्ड
न ही लेता है तलाशी
उलट-पुलट कर मेरे सूटकेस की
जिसमें ठूंस - ठूंस कर भरी गई हैं
ग़ैरक़ानूनी ख़ुशियां
प्रतिबन्धित कविताएं
और रसीली तकलीफ़ें

स्त्री का दिल इकलौता ऐसा मुल्क है
जो ज़खीरे नहीं बनाता मारक-हथियारों के
न ही झोंकता है अपने लोगों को
लड़ने के लिए
ख़ुद की छेड़ी लडाइयां

Tuesday 9 October 2012

तेरी चाहत !!!!

तेरी चाहत बनी राहत,  मेरे वीरान मंजर की !
तेरा आना मुकद्दर में,  यूँ ही किस्मत नहीं होती !!


 

अभी तक सोंचता हूँ मैं, सभी बातें मोहब्बत की !
तू मुझसे दूर है कहना, मेरी हिम्मत नहीं होती !!
खुदी से कहकहे कहना, मेरी आदत है रातों की !
मेरी साँसे भी अब जाना, मुसलसल भी नही होती !!

            
                  जितेन्द्र सिंह बघेल 
                   09 सितम्बर 2012

Friday 5 October 2012

मेरी उलफतें !!!!!

न जाने उलफतें भी अब, मुझे तड़पा नहीं पातीं !
उन्हें अफ़सोस होता है, मुझे समझा नहीं पाती !!
मैं बुजदिल भी नहीं हूँ ये, उन्हें समझा नहीं सकता !
उन्ही का हो चूका हूँ मैं, मुझे बतला नहीं पाती !!
कोई हमदर्द था मेरा, यही एहसान है उनका !
मेरी उलफत बेगानी हैं, मुझे अपना नहीं पातीं !!

                 !! जितेंद्र  सिंह बघेल !!
                        5th  सितम्बर 

Thursday 13 September 2012

मैं और वो !!!!

बड़ा मशगूल सा  हूँ मैं, यहाँ कुछ लोग कहते हैं !
मुझे मालुम नहीं की क्यों, मुझे बदनाम करते  हैं !!
किसी की याद में खोना, बड़ा मुश्किल उन्हें लगता !
जिसे है खो दिया पहले, उसे ही याद करते हैं !!


Tuesday 4 September 2012

मेरे मार्गदर्शक मेरे शिक्षक !!!!

मैं जो कुछ भी हूँ आज, उन्ही के क़र्ज़ के कारण !
नहीं मैं कर रहा होता, यहाँ  कुछ और भी धारण !!
मेरा हर जन्म भी कम है, जिसे चुकता नहीं सकता !
नया जीवन दिया उसने, जिसे मैं कर रहा धारण !!
मेरी हर राह में था वो, नहीं छोड़ा अकेला भी !
यहाँ तक आ गया हूँ मैं, उसी एक सख्स के कारण !!
कभी मन जब हुआ व्याकुल, उसे बस याद हूँ करता !
मिटा देता है सब उलझन, मेरे अरमान के कारण !!
कभी भटका जो राहों में, पकड़ के हाथ कहता है !
तू चलता जा मेरे बच्चे, मैं ही तो हूँ तेरा तारण !!

  "शिक्षक दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ "

                    जितेन्द्र सिंह बघेल
                     5 सितम्बर 2012 

Monday 3 September 2012

मेरी rusawaiyan !!!!

Kisi humdard ki khatir, khudi se kyon khafa hai tu...
Milega jo bhi milna hai, bada khudgarz hai kyon tu...
Teri rushwaiyon ki bhi, kasish mujhko pta hai ab...
Mere har jakhm hain gahre, jinhe samjha nahi hai tu...
Wo pal mujhko nahi bhoole, jinhe main jee gya tga tab...
Falak tak ja chuka hun main, kaha se dekhta hai tu...

                "Subh-Ratri Mitro"
meri bebasi ka aalam na pooncho, mere yaaro...
wo hoke bhi mera nahi...
tanhaiyon ka samundar mila poora ka poora...
isme kastiyan chalana bhi, kuch kam nahi..

मेरा बेदर्द दर्द !!!!

Tere nafarat ke kabil hun, mujhe badnaam tu mat kar.!
kisi din tod dunga main, sabhi rushwaiyon ka der.!!
Mera humdard bnta tha, abhi kuch bat tu mat ker.!
tere saare gunaahon ko, bhulaya hun tera hoker.!!
Abhi to raat poori hai, na jane kab subah hogi.!
main kab se yun hi baitha hun, tere saaye me hi khoker.!!
Tu mujhko bhool jane ki, agar ker de khata ek din.!
main khud se rooth jaunga, mujhe majboor ab na ker.!!
Tujhe yun kho diya maine, wo meri badnaseebi thi.!
khudi se poonchta hun main, tu ab afsos kuch mat ker.!!

"Subh-Prabhat Mitro"

Thursday 30 August 2012

जख्म का मरहम !!!!

मेरे जहन में रहने का, शुक्रिया कहूँ तुझे कैसे !
तू तो मरहम है मेरे हर जख्म का,
तुझसे दूर रह सकूँ कैसे !!
मेरी दुनिया से जाने का, गिला भी कर सकूँ  कैसे !
मोहब्बत कर गया तुझसे,
अभी तक जी रहा कैसे !!
मेरे हर साँस में बसना, तेरी फितरत बनी कैसे !
नहीं कुछ मांग पाया मैं,
मोहब्बत से - मोहब्बत से !!

    जितेन्द्र सिंह बघेल
    30 अगस्त 2012

Friday 17 August 2012

गुनाहों की सजा !!!!

 मुझे  चुपके से यूँ, छूना तेरा, क्यों याद आता  है !
न जाने किन की बाहें अब,  तुझे थामे हुए होंगी !!
कभी फिरदौस था मेरा, अभी परवाह करता है !
न जाने किन निगाहों से, उन्हें वो देखती  होंगी  !!
तसब्बुर भी हुआ दुश्मन, नहीं अब याद करता है !
न जाने किस की गलियों में, वो आहें भर रही होंगी !!
वो खुशबू आज भी ये  दिल मेरा, महसूस करता है !
न जाने किस की बाँहों में, वो जा महक रही होंगी !!
ये दिल अब भी मेरा तनहा, मुसाफिर बन के बैठा है !
न जाने किन गुनाहों की,  सजा वो पा  रही होंगी !!
जितेंद्र सिंह बघेल 
१७ अगस्त २०१२

Thursday 16 August 2012

मेरा एहसास !!!!

वो अपने थे कभी, अब तो ये एहसास ही काफी है !
फकत लम्हों में तो, सितारे भी गिर जाया करते हैं !!
हमारी ज़िन्दगी के पन्नो में, दीमक सी लगी है !
हम खामखाँ ही, परायों से डर जाया करते हैं !!
कुछ तनहाइयों ने हमे, अपना जो लिया है !
वरना हम तो खुद के साये से भी, डर जाया करते हैं !!
अभी तो साली ज़िन्दगी भी, पूरी जिंदा है !
हम तो हर रात खुद को यूँ ही मारा करते हैं !!
कभी फुरसत मिले तो आना यारो....
कुछ दर्द भी हैं, जिन्हें हम शौक से सहा करते हैं !!


                   " जितेंद्र सिंह बघेल "
                      १६ अगस्त २०१२

Wednesday 1 August 2012

मन का मनन !!!!

कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
हम जी रहे वो ज़िन्दगी, जिसका नहीं मकसद कोई !
हम ढूढते हैं जख्म क्यों, जिसके खुदी मरहम हैं हम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
है एक तारा आसमां का, जल रहा था  शान से !
फिर आज क्यों तू बुझ गया, क्या लुट गयी तेरी सरम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!

                                        जितेन्द्र सिंह बघेल
                                       "01 अगस्त 2012" 

Friday 27 July 2012

महबूब की कसमें !!!!

मेरी किस्मत में कुछ और वक़्त लिख दे मौला !
आज मैंने महबूब की कसमें खाई हैं !!
नहीं उसे शक होगा मेरी मोहब्बत पे !
जिसे अब तक मैंने बड़ी सिद्धत से निभायी है !!
                                   जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                      27 जुलाई 2012


Thursday 26 July 2012

वतन की आबरू !!!!

वो दिया क्यों बुझ गया, जो जल रहा था शान से,
आज क्यों है रो रहा, वतन मेरा ईमान से !!
क्यों बदल गया कोई, आईने घरों के सब,
क्या कोई बचा नहीं जो कह सके ईमान से !!
क्यों आबरू है लुट रही, लबों पे शब्द न रहे,
दिलों की  बात क्या करें, जो लुट गया है जान से !!
वो वक़्त एक था कोई, जहाँ थी हस्तियाँ कोई,
तो आज फिर क्यों डर रहा तू , अपनी ही जान से !!
क्यों हो गया गुलाम तू ,  आज एक बार फिर ,
तू आदमी नहीं रहा, बदल गया ईमान से !!
                                         जय हिंद - जय भारत 
                                           जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                            26 जुलाई 2012

कुछ गुनाह !!!!

कुछ गुनाह करके भी पछताया नहीं जाता,
उनकी मजबूरी तो देखो, चाह कर भी कुछ कहा नहीं जाता !!
वो बेबस हैं, या हैं कातिल, खुदी में उलझे हुए हैं,
हम भी कितने बेबस हैं, ये दर्द अब सहा नहीं जाता !!
उनका मिलना भी एक, खुद किस्मती थी हमारी,
हजारों दर्द हैं, किसी एक को बताया नहीं जाता !!
उनके चेहरे में कुछ बात तो जरूर थी यारो,
तभी तो,  इन आँखों से कोई और चाहा नहीं जाता !!
                                                                   जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                                                     26 जुलाई 2012

Tuesday 24 July 2012

मुकद्दर और गम !!!!

मेरे मुकद्दर में कुछ गम और लिख दे मौला,
क्या पता, फिर ज़िन्दगी में उसका दीदार न हो !
ये उलफत में जीना बहुत हो गया,
कुछ ऐसा कर की, खुद पे ऐतबार न हो !!
 है खुशबु आज भी उसकी, धडकती आज भी वो है,
फरक इतना है यारो अब,  किसी की याद में  है वो !!
                     जितेन्द्र  सिंह बघेल                     
                       24 जुलाई 2012


Sunday 22 July 2012

मेरी जाना !!!!

मुझे लगा नहीं कभी की, तू इस कदर लौटेगा !
मेरे वजूद में शामिल, तेरी हर सांस थी जाना !!
तेरे हर अश्क की कीमत, मैं  लौटा नहीं सकता !
मेरे हर वक़्त में शामिल, तेरे अरमान थे जाना !!
तेरा आना भी क्या आना, तुझे अपना नहीं सकता !
मेरे अपनों ही ने तो, मुझे मारा मेरी जाना !!
                          जितेन्द्र सिंह बघेल 
                            23 जुलाई 2012

Monday 2 July 2012

तरक्कियों का दौर !!!!

तरक्कियों के दौर में, उसी का दौर चल गया !
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया !!
कहा तो बात कर रहा था, खेलने को आग से !
ज़रा सी आंच क्या लगी, की मोम सा पिघल गया !!
रख हौसला खुदी में तू, न सोँच जो बिगड़ गया !
तुझे भी क्या बतायेगा, जो पल अभी गुजर गया !!
है नियत भी गुलाम अब, करम तेरा प्रधान है !
बना दे ऐसा रास्ता, जहाँ  से तू गुजर गया !!
चले जहाँ, जहाँ सकल, बना दे ऐसा रास्ता !
डरे बिडम्बना भी अब, जिसे तुने कुचल दिया !!
तरक्कियों के दौर में, उसी का दौर चल गया !
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया !

      " जय हिंद "
  जितेन्द्र सिंह बघेल 
    02 जुलाई 2012

Wednesday 27 June 2012

सोंच की पराकाष्ठा !!!!

कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!
अपनों की खुशियों की खातिर, खुद के सपनो को तोड़ गये !
ये दर्द बयाँ अब नहीं करना, जिनसे साँसे भी डरती हैं !!
कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!
थी पाक मोहब्बत अपनी जब, तो असर नहीं क्यों होता है !
उसके जीवन में खुशियाँ क्यों, अब भी अँधेरा करती हैं !!
कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!
हूँ अब भी बैठा कातिल सा, उसके सपनो को मार गया !
इस दर्द को लेके जीता हूँ, जाने साँसे क्यों चलती हैं !!
कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!
एक करम नहीं कर सकता है, ये खुदा भी है बेगाना क्यों !
उसकी रहमत की खातिर ही, शायद ये साँसे चलती हैं !!
कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!
कब बरसेगी रहमत तेरी, महबूब मेरा जब खुश होगा !
उस पल की खातिर साँसे भी, खुद से ही दुआएँ करती हैं !!
कभी न सोंचा दिल ने जिनको, वो बातें क्यों होती हैं !
सोंच सोंच के जाहिल दिल को यूँ ही टोंका करती हैं !!


 जितेन्द्र सिंह बघेल
   "28 जून 2012" 



Thursday 21 June 2012

क्यों आज मुझे तू कहती हैं !!!!

क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !
चलने का नाम जवानी है, कर गुजर जो है तू करने को !!
जो आग भरी  है अंतर में, वो आग नहीं है बुझने को !
क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !!
हैं अश्क भरे इन आँखों में, जो बने नहीं हैं गिरने को !
ये जीवन भी क्या जीवन है, जो बना ही है मिट जाने को !!
क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !
रब मिला नहीं तो क्या गम है, है मिला कोई झुक जाने को !!
दिल आज उसे ही चाहे है,  जो बना ही है तडपाने को !
क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !!
है गम की परछाई सी क्यों, जब मिला नहीं कुछ खोने को !
दिल महक रहा फिर अब क्यों, जब रहा नहीं कुछ कहने को !!
क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !
क्यों आज मुझे तू  कहती हैं, मत सोंच किसी अफ़साने को !


                                                  जितेंद्र सिंह बघेल 
                                                    "21 जून 2012"




Tuesday 12 June 2012

आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
कुछ राहें थी अनजानी सी, कुछ यादें थी  बेगानी सी !
जिनका जिकर करूँ तो, अब लब कंपने लगते हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
राहें मगरूर हुई हैं क्यों, दिल टूटा -टूटा लगता है !
ये कदम मेरे न जाने क्यों, अब बहके - बहके लगते हैं  !!
आते - जाते कुछ चेहरे, क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
राहे गुलज़ार हुई अब क्या, जब बचा नहीं कुछ जीवन में !
जलकर जो रंगत छोड़ गये, वो रंग अभी भी बसते हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
कुछ करम किये थे हमने भी, सोंचा था जसन मनाएंगे !
वो मसल गये अंतर्मन को, जो अंतर्मन में बसतें हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे, क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
ये आँखे भी हैं तरस गयी, ये हाथ खुदी से कहते हैं !
जो रहा नहीं अब अपना सा, उसके सपने क्यों पलते हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
है पुलकित और प्रफ्फुलित मन, हर रोम - रोम कुछ कहता है !
साँसो के इस उदगम में भी, वो निर्झर बनकर बहते हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
हैं साथ नहीं  मेरे अब वो, फिर साँसों में क्यों जीते हैं !
दिलरुबा कहूँ या दिलबर भी, ये नाम पराये लगते हैं !!
आते - जाते कुछ चेहरे,  क्यों अपने लगते हैं  !
इन कशिश भरी दो आँखों में, कुछ सपने बसते हैं !!
                                        "जितेन्द्र सिंह बघेल"
                                              12 जून 2012









Tuesday 5 June 2012

तेरी रहमत गिरेगी कब, तुझे दर्खास्त करता हूँ !
तेरी रहमत की खातिर ही, मैं ये बकवास करता हूँ !!
न जाने क्यों दिया तुने, मुझे वो दर्द का सागर !
उसी में तैरता भी हूँ, उसी में डूबता भी हूँ !!
वो दिन मेरी मोहब्बत का, बड़ा मशहूर होता था !
कोई लौटा दे उस पल को, जिसे मैं याद करता हूँ !!
मुझे मालूम है तेरी, सभी वो फिक्रमंदियाँ !
तू करदे फिर से  सब कुछ वो, जो मैं अरमान करता हूँ !!
तेरे दर पे झुका हूँ मैं, तेरी फितरत से वाकिफ हूँ !
नहीं अरमान है अब कुछ, तेरी दुनिया में आता हूँ !!
तेरी रहमत गिरेगी कब, तुझे दर्खास्त करता हूँ !
तेरी रहमत की खातिर ही, मैं ये बकवास करता हूँ !!
                                   जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                      "5 जून 2012"



Tuesday 22 May 2012

कभी दिल से पुछा ही नहीं मैंने, की तू इतना पत्थर दिल क्यों है !
जिसे मैं नाजुक समझता था, वो इतना जाहिल क्यों है !!
मत कर ऐसा, गुनाह हो जाएगा,
मुझे समझाने वाला आज, गुमसुम सा क्यों है !!
आज भी काँप जाता है जिस्म सारा,
उसके लबों पे मेरे लिए दर्द क्यों है !!
कभी डरता था दुनिया से, 
की वो इतनी पागल क्यों है !!
अभी लड़ता हूँ मैं खुद से,
वो मुझसे दूर अब  क्यों है !!
कभी चर्चे मोहब्बत के, मेरे यूँ आम होते थे,
अभी दुनिया मोहब्बत की, मेरी बदनाम सी क्यों है !!
उसी के जिक्र में जिन्दा है, मेरी मोहब्बत अब,
वो आएगा मेरे घर में, अजब ये आस सी क्यों है !!
बचा कुछ भी नहीं है अब, तेरे - मेरे फ़साने में,
ना जाने दिल मेरा तुझको, करता याद अब क्यों है !!
कभी दिल से पुछा ही नहीं मैंने, की तू इतना पत्थर दिल क्यों है !
जिसे मैं नाजुक समझता था, वो इतना जाहिल क्यों है !!
                                                
                                                जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                                   22 मई 2012 
 
 
 

Wednesday 16 May 2012

आज क्यों मुझे, मेरा बचपन याद आ रहा है !
मानो मेरे इस जले दिल को और जला रहा है !!
शर्म आती है मुझको, गुजरता हूँ जब !
कोई कहता है ये, की तू कहाँ  जा रहा है !!
वो गलियां है मेरी, कहानी है कहती !
जहा से मेरा, ये बचपन आ रहा है !!
मुझे क्यों नहीं अब, बुलाता है बरगद !
वो यूँ ही मुझे बस, घूरे जा रहा है !!
शायद परेशां  है, फितरत से मेरी !
इसी कसमकस से लड़ा जा रहा है !!
मेरे रोम होते, खड़े क्यों ही जाते !
मेरा ही जमीर, क्यों मुझे हिला रहा है !!
आज क्यों मुझे, मेरा बचपन याद आ रहा है !
मानो मेरे इस जले दिल को और जला रहा है !!
आज क्यों मुझे, मेरा बचपन ..................
                           जितेद्र सिंह बघेल 
                            "16 मई 2012"

Monday 14 May 2012

निकला था जमाने को बदलने, कब जमाने ने मुझी को बदल दिया !
मैं बैठा था एक दिन यूँ ही, की मेरी परछाई ने  मुझ से ही सवाल कर दिया !!
तू क्यों आया इस जमाने में जहाँ, कातिल हैं सारे लोग,
करेंगे काम कुछ ऐसे, की खो देगा तू भी होश !!
मैं समझ ही नहीं पाया की, कैसे दूँ गिला इसको,
भले ही अब नुमाइश को, क्यों न  लाये मुझको लोग !!
मैं आया था कुछ सपने सजाने, जमाने ने मुझे ही सजा दिया !
निकला था जमाने को बदलने, कब जमाने ने मुझी को बदल दिया !!
                                                       जितेंद्र सिंह बघेल 
                                                         15  मई 2012 
 


Friday 11 May 2012

तू जैसी थी वैसी आज भी है,
मेरा हर रोम तेरा मोहताज़ आज भी है !!
कभी भटका जो राहों में, तो रुखसत होती है यूँ, 
पलट के कहती है मुझसे , तू बच्चा आज भी क्यों  है !!
मेरी हर सांस कहती है, माँ तू जाना ना  दूर,
करूँ  कैसे मैं  शिकवा, मेरा अरमान तू ही है !!
तेरे आँचल की छाया में, मैं सोना  चाहता हूँ अब,
तुझे समझाऊं कैसे मैं, मेरा जहां तू ही है !!
जिया हर पल को मैंने यूँ ,
लगा तेरा हाथ सर पे है ,
तुझे बतलाऊं कैसे मैं , तू जैसी थी वैसी है !!
                    -जितेंद्र सिंह बघेल 
                       "12 मई 2012"
इस ब्रहमांड की सभी पूजनीय माताओं को मेरा चरण स्पर्श प्रणाम...

Thursday 10 May 2012

मेरे दिल की कशिश समझो , तो जानू मैं की हस्ती हो....
किसी पे जान लुटा देना, मेरी फितरत में शामिल है !!
वो समझे तो कभी मेरी मोहब्बत की, सदाओं को ....
उसे समझा नहीं पाया, जो मेरे दिल के काबिल है !!
वो पागल है या काफिर है, उसे समझा नहीं सकता...
मेरे सपने वो बुनती है, उन्ही की खुद वो कातिल है !!
मेरे दीवानेपन की वो मुअक्किल बन नहीं सकती...
उसे समझा नहीं पाया, जो मेरी खुद की कातिल है !!
                             - जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                11 मई 2012, 
कभी -कभी मैं सोंचता हूँ , के मैं फ़साने ढूँढता हूँ,
मगर मोहब्बत करने का जरिया तो हो !
किसी पे ऐतबार करने को दिल चाहता है,
मगर मेरी मोहब्बत पे ऐतबार तो किसी को हो!
ज़िन्दगी यूँ ही जिए जा रहे दर -बदर,
किसी पे सदके जाने का दिल तो हो!
                                 - जितेंद्र  सिंह बघेल 
 
Zindagi ki haqeekat se samna jb hoga, tb khud ko sambhalenge.
Yahi soncha karte the jb, jawani ki taraf bad rhe the.
Ye zawani bhi aa gyi, jo aani thi yaaro,
kisi ko hansaye to kisi ko rulaye...
Yahi sonch kr bad rhe the..
hume kya pta ye raasta hai dard ka,
kab chale is per, kab mazboor ho gye,
Kisi ne kaha tha aise hi rahana, jaise mere saatha rahte ho,
fir ye duniya kahti hai, kyo itna dard sahte ho.
Kuch to fikar thi meri, mere sanam ko,
warna kaun sanjhata hai kisi be-raham ko.
Usi ki fitrat ne sikha diya jeene ka bahana,
nahi mai kaun hun,kya hun,kaise jaan pata ye jamana.
Ab jeene ki aaezoo nahi rahi yaaro, mere sanam ne mujhe bula liya,
kaun kahta hai mer ker pyar nahi hota, maine is sach ko jhoontha bana diya.....

-Jitendra Singh Baghel...19th April,2012
Mohabbt ki taameel karte-karte, mohabbt hi ruswa ho gyi..!
Taash ka mahal banaya tha siddhat se,
Hawa bhi u hi majaak ker gyi..!
Wo din kuch aur hi the, jab charche mere aam the..
Aaj aalam ye hai ki, khud meri mohabbt mujhe neelaam ker gyi..!
Afsos hai mujhe apni pak mohabbt se,
Jo hai to meri, per be ijjat mujhe sareaam ker gyi..!
Her pal bulaya use, jab bhi maut ne dastak di..
Ye mohabbat ka asar tha, ya dua thi mahboob ki..
Meri mohabbt aaj fir jeet gyi..!
Mera yaar mujhse door tha..
Jab maut meri aa gyi..
Use bji mahsooa hoga, 
Ki ab khabar meri aa gayi..!
Her waqt bulaya use apne pas..
Abhi ruk jao, kahkr saase meri bachati gyi..!
Tanha jiya, tanha mara, tanhai ne mohabbt ker li..
Aaj pahli bar tanhai, mohabbt ko apna gyi...!
-Jitndra Singh Baghel
Ye dhundh hai zindagi, ki dhundh me hain hum...
badi rahmat se aaj, aankhe hui hain num...!
Wo aadat hai meri, ya jaroorat hun main...
isi kas-makas se, jee rahe hai hum...!
Tu hoke bhi nahi hai, to teri sadayen kyon aati hai...
Tu jahmat na utha, lut jaayenge hum...!
Kabhi aaa mere tassbbur me, to tu ho jayegi faunaa...
Is jism ko hai sahne, tere aur bhi sitam...!
Kabhi ho jaye dedaar tera, is khawish se jeeta hun...
Kal ka kya pta, aaj to tu hai bewafa sanam...!
-Jitendra Singh Baghel.

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...