बहुत रोये तो क्या पाये, ज़रा सा हँस के देंखे अब !
कहा लौंटें, कहाँ जाएँ, ठिकाने भर चुके हैं सब !!
किसी को पाके खोने का, गिला शिकवा नहीं है अब !
ज़माने भर की खुशियाँ भी, हंसा सकती नहीं हैं अब !!
मगर जीने की राहों को, नहीं छीना किसी ने भी !
मुझे लगता है डरता है, जमाना भी कसम से अब !!
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
16th अगस्त 2014