जिसमें जगने का भान नहीं, वो जगते रहके सोता है।
जिसके अंदर इंसान नहीं, वो कायर होकर जीता है॥
कितनी पांचाली चीर हरित, कितनी होने की खातिर हैं।
कितने दुःशासन प्रबल अति, कितने होने को आतुर हैं॥
है प्रश्न वही, जो पहले था, कब अन्तर्मन पुलकित होगा।
क्या शेष रहेगा जीवन भी, जब तू ख़ुद में जीवित होगा॥
है हर अधर्म का अंत युद्द, हो चाहे फ़िर वो ख़ुद से ही,
मेरी मनसा गांडीव बनें, हूँ रोमांचित टंकार से ही॥
तू जाग छोड़ के निद्रा को, क्यों स्वप्न लोक में जीता है।
है आज़ जो तेरा पास तेरे, कल और किसी का होता है।
जिसमें जगने का भान नहीं, वो जगते रहके सोता है।
जिसके अंदर इंसान नहीं, वो कायर होकर जीता है॥
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
31 जुलाई 2019
॥ तीन तलाक की विदायी की सबको हार्दिक बधाई॥