Saturday 19 October 2013

जब साथ मेरे तू होती है !!

तू साथ मेरे जब होती है, हर राह क्यों मुमकिन लगती है !
ये बात बड़ी ही गहरी है, हर बात पे आहें भरती है !!
हर बात मुसाफिर लगती है, जब राह मेरी तू होती है !
किस बात का मुझको डर यारो, जब साथ मेरे तू होती है !!
. 
जितेन्द्र सिंह बघेल
                             19th Oct 2013

Friday 16 August 2013

लम्हों की कसक !!

जाना चाहा था दूर बहुत, पर कदम मेरे अब टूट गये !
जिन रिश्तों का था नाज़ बड़ा, वो रिश्ते सारे टूट गये !!
.
लम्हों की कसक बड़ी गहरी, मन को मानो झखझोर गयी !
हर दुआ में उसका नाम लिया, वो दुआ न जाने कहा गयी !!
.
जिन हाथों में थे हाथ मेरे, वो हाथ अचानक छूट गये !
जिन रिश्तों का था नाज़ बड़ा, वो रिश्ते सारे टूट गये !!
.
जितेन्द्र सिंह बघेल
17th अगस्त 2013

Wednesday 26 June 2013

तू याद कभी न फिर आये !!!!!!!!!

जब साथ नहीं चल सकते थे तो, राह में मेरे क्यों आये !
हर जख्म अकेले सहते थे, तुम मरहम बनकर क्यों आये !!

मेरे ज़ज्बात बेगाने हैं, जो शायद हद से पार गये !
हैं मगर आज सर्मिन्दा हम, जो शायद तुम से हार गये !!

तेरे दुःख की बख्शीशों में, हमने अपना सुख वार दिया !
ये बात गलत क्यों लगे मुझे, की मैंने तुझसे प्यार किया !!

हूँ आज अभी तक वैसा ही, जैसा मैं पहले होता था !
वो दौर आज फिर लौटा है , जैसे मैं पहले रोता था !!

हो गयी वफ़ा क्यों आज खफ़ा, शायद ये वक़्त कभी आये !
बस दुआ यही है यार मेरे, तू याद कभी न फिर आये !!

जब साथ नहीं चल सकते थे तो, राह में मेरे क्यों आये !
हर जख्म अकेले सहते थे, तुम मरहम बनकर क्यों आये !!
.
.
.
जितेन्द्र सिंह बघेल
27th जून 2013

Monday 17 June 2013

जिल्लत !!!


न उल्फ़त में जीना आया,  न जिल्लत में मरना आया !
बड़ी कमबख्त हैं,  ये दुनिया के रश्में,
न उन्हें रोना आया,  न हमे रुलाना आया !!
.
.
.
जितेन्द्र  सिंह बघेल
17th जून 2013

Wednesday 1 May 2013

मन की बातें !!!!

वो मन की बातें जान सकें, कुछ ऐसी काश खुदाई हो !
हम हर मंजर सह जायेंगे, फिर चाहे बाद जुदाई हो !!
.
सारा जीवन ही झोंक दिया, हमने उनको अपनाने में !
फिर भी न जाने तनहा हैं, कुछ भूल हुई अनजाने में !!
.
कुछ बात लगी हैं शूल मुझे, शायद उनको एहसास न हो !
है बात मगर कुछ ऐसी ही, शायद उनको अफ़सोस न हो !!
.
वो मन की बातें जान सकें, कुछ ऐसी काश खुदाई हो !
हम हर मंजर सह जायेंगे, फिर चाहे बाद जुदाई हो !!
















जितेन्द्र सिंह बघेल 
2nd जून 2013

Monday 29 April 2013

ज़िन्दगी के मायने !!!!!

ज़िन्दगी के मायने समझ न सका, लोग मुझको बुरा ही समझने लगे !
हैं मोहब्बत मेरी, जो लगे अब दुआ, लोग उसमे भी ऊँगली उठाने लगे !!

मेरी हिम्मत का लोहा न लेना कभी, मेरे अरमाँ न जाने बहकने लगे !
बस लगी टीस मुझको कसम से सनम, मेरे अपने पराये से लगने लगे !!
काश लब्जों का लहजा समझ पाते वो, जो धड़कन से पहले धड़कने लगे !
ज़िन्दगी के मायने समझ न सका, लोग मुझको बुरा ही समझने लगे !
जितेन्द्र सिंह बघेल
 29th अप्रैल 2013

Friday 19 April 2013

उल्फत !!

तुझे खोने के डर से मैं, न जाने क्यों डरा सा हूँ !
किसी को खो दिया मैंने, किसी को पा लिया सा हूँ !!

मेरे किस्से मोहब्बत के, मुझे जीने नहीं देंगे !
खुदी की ही निगाहों में, खुदी से गिर गया हूँ मैं !!

ये उल्फत है या जिल्लत है, उसे बतला नहीं सकता !
मगर अपनी वफाओं का, सिला भी पा चूका हूँ मैं !!

 
19 अप्रैल  2013
जितेन्द्र सिंह बघेल

Friday 12 April 2013

बस माँ का आँचल !!

हैं मौत से पहले मुझे, कुछ ख्वाहिशों की रहमतें !

मरके मिले बस माँ का आँचल, और न हों उल्फतें !!



जितेन्द्र सिंह बघेल
12 अप्रैल 2013

Thursday 28 March 2013

अपनापन - परायापन !!

हमने सुना था, की  अपने कितने भी पराये क्यों न हो जाएँ,
मगर अपनापन नहीं जाता !

मगर यहाँ तो कुछ और बात दिखी यारो, इतना परायापन मिला,
की साला बताया नहीं जाता !!
  


जितेन्द्र सिंह बघेल

28 मार्च 2013

Thursday 21 March 2013

हो एक दृष्टि, हो एक डगर !!

 हो एक दृष्टि, हो एक डगर मानो सारा जग अपना है !
निज स्वार्थ सिद्ध के खातिर जो, लुट जाये वो क्या अपना है !!

ए वतन तुझे है नमन मेरा, मर मिटू तुझी पे सपना है !
हो एक दृष्टि, हो एक डगर मानो सारा जग अपना है !!

जितेन्द्र शिवराज  सिंह बघेल 
21 मार्च 2013

Monday 11 March 2013

जलता हूँ जज्बातों में !!!!!!!


जलता हूँ जज्बातों में, मत पूँछ मेरे अफसानो को !
हर मंजर मुझसे रूठा है, है जीवन जैसे जाने को !!

हर किस्सा मेरा अपना ही, क्यों आज मुझी से पूंछे है !
है वक़्त बड़ा बेदर्दी सा, सब कुछ है जैसा खोने को !!

उन राहों में जब जाता हूँ, हर मंजर मुझसे कहता है !
क्यों आँखें तेरी नम सी हैं, तू चाहे जैसे रोने को !!

जितेन्द्र सिंह बघेल
12th मार्च 2013

Tuesday 5 March 2013

कुछ बात गलत सी लगती है !!!

करबद्ध मेरे अब हाथ नहीं, हो पाते हैं तेरे आगे !
कुछ बात गलत सी लगती है, कह पाता न तेरे आगे !!

मन शान्त नहीं, अति कुंठित है, परवाह नहीं कर  पाता है !
हे ईश्वर मुझको शक्ती दे, झुक जाऊं मैं तेरे आगे !!

कुछ प्रणय वेदना डसती है, कुछ अपने मुझसे दूर गये !
हर बात का तुझको भान प्रभू, कह पाऊं क्या तेरे आगे !!

करबद्ध मेरे अब हाथ नहीं, हो पाते हैं तेरे आगे !
कुछ बात गलत सी लगती है, कह पाता न तेरे आगे !! 


जितेन्द्र सिंह बघेल
5th मार्च 2013

Monday 4 March 2013

कभी कभी भगवान् भी गलती करते हैं क्या ?
ऐसा विचार मेरे मन में कई बार आ चुका है, जब जब कोई अनहोनी किसी अपने के साथ हो जाती है, और वो हमे छोड के उसी के पास चला जाता है, तब लगता है की काश मेरे अपने के जगह भगवान मुझे चुनता !!

Thursday 7 February 2013

मैं ईश्वर भीरु नहीं हूँ..!!

मैं ईश्वर भीरु नहीं हूँ. भय ईश्वर तक नहीं ले जाता है. उसे पाने की भूमिका अभय है !
मैं किसी अर्थ में श्रद्धालु भी नहीं हूँ. श्रद्धा मात्र अंधी होती है. और अंधापन परम सत्य तक कैसे ले जा सकता है?

मैं किसी धर्म का अनुयायी भी नहीं हूँ, क्योंकि धर्म को विशेषणों में बाटना संभव नहीं है. वह एक और अभिव्यक्त है.!

कल जब मैंने यह कहा तो किसी ने पूछा, “फिर क्या आप नास्तिक हैं?”

मै न नास्तिक हूँ, न आस्तिक ही. वे भेद सतही और बौद्धिक हैं. सत्ता से उनका कोई संबंध नहीं है. सत्ता ‘है’ और ‘न है’ में विभक्त नहीं है. भेद मन का है, इसलिए नास्तिकता और आस्तिकता दोनों मानसिक हैं. आत्मा को वे नहीं पहुंच पाती हैं. आत्मिक विधेय और नकार दोनों का अतिक्रमण कर जाता है.

‘जो है’ वह विधेय और नकार के अतीत है. या फिर वे दोनों एक हैं और उनमें कोई भेद-रेखा नहीं है. बुद्धि से स्वीकार की गई किसी भी धारण की वहाँ कोई गति नहीं है.

वस्तुत: आस्तिक को आस्तिकता छोड़नी होती है और नास्तिक को नास्तिकता, तब कहीं वे सत्य में प्रवेश कर पाते हैं. वे दोनों ही बुद्धि के आग्रह हैं. आग्रह आरोपण हैं. सत्य कैसा है, यह निर्णय नहीं करना होता है; वरन अपने को खोलते ही वह जैसा है, उसका दर्शन हो जाता है.

यह स्मरण रखें कि सत्य का निर्णय नहीं, दर्शन करना होता है. जो सब बौद्धिक निर्णय छोड़ देता है, जो सब तार्किक धारणाएं छोड़ देता है, जो समस्त मानसिक आग्रह और अनुमान छोड़ देता है, वह उस निर्दोष चित्त-स्थिति में सत्य के प्रति अपने के खोल रहा है, जैसे फूल प्रकाश के प्रति अपने को खोलते हैं.

इस खोलने में दर्शन की घटना संभव होती है.

इसलिए, जो न आस्तिक है न नास्तिक है, उसे मैं धार्मिक कहता हूँ. धार्मिकता भेद से अभेद में छलांग है.

विचार जहाँ नहीं, निर्विचार है; विकल्प जहाँ नहीं, निर्विकल्प है; शब्द जहाँ नहीं, शून्य है- वहाँ धर्म में प्रवेश है.

अतः हे महामनाओ !!!
मत बांटो हमे, इस देश को मत बांटों धर्म और जातिगता से, अपने निजी स्वार्थ हेतु !
कदाचित तुम्हे ज्ञान नहीं है "ओबेसी और तोगड़िया" की इंसान केवल इंसान है, सब तो एक सा है क्या अलग है या भिन्न है बता दो !!

किसी भी धर्म  की आस्था को ठेस पहुँचाना या उसका अपमान करना किसी भी धर्म की श्रेस्ठतम ग्रन्थ या पवित्र पुस्तक में नहीं लिखा है !!

बेवक़ूफ़ हैं ऐसे लोग जो ऐसे बहकाबे में आ जाते हैं !!

जितेन्द्र सिंह बघेल

8th फरवरी 2013

Saturday 2 February 2013

मेरा खालीपन !!!!!!!!!!!!

यादों के बादल बरस चुके, अब बंजरपन अपनापन है !
हर बूँदें हैं बस स्याह रात, खाली खाली  अब जीवन है !!

गरमी की गरमाहट भी अब, है कष्ट नहीं दे पाती है !
ठंडी की सिकुड़न में भी वो, मुझ में उबाल सा लाती है !!

जन्नत की शोहरत फीकी है, बिन उसके ऐसा जीवन है !
यादों के बादल बरस चुके, अब बंजरपन अपनापन है !!

हर सावन मुझसे कहता है, हर पतझड़ मुझसे कहता है !
हर मौसम तेरे साथ थी वो, तू कहने से क्यों डरता है !!

बस बात यही हर मौसम की, भरती मेरा खालीपन है !
यादों के बादल बरस चुके, अब बंजरपन अपनापन है !! 

जितेन्द्र सिंह बघेल 
2nd फ़रवरी 2013
 

Monday 28 January 2013

जीवन का सच !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !!

सच बोलो तो बुरे बनो, फिर लोग कहें क्यों सच बोलो !
सच का मतलब समझो यारों, फिर तभी कहो की सच बोलो !!



कुछ सच मानो पछतावे से, जिनके कहने से दर्द हुआ !
तो बंद करो पछताना अब, जो बोल दिया तो बोल दिया !!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !!


हर शख्स यहाँ पे झूँठा है, हर चेहरे मानो नकली है !
जीवन की करवट ऐसी है, की मानो एक पहेली है !!

ये सच भी कितना कड़वा है, सारे रिश्तों को तोड़ दिया !
है लानत ऐसे सच में भी, जिसने रश्मों को तोड़ दिया !!

जीवन का सच भी, क्या सच है, जिसने इस सच को बोल दिया !
जीवन के इस मझधार में खुद, अपनी नईया को डुबा दिया !
!


जितेन्द्र सिंह बघेल

28th जनवरी 2013

Thursday 24 January 2013

हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !!

 हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !
 राहें भी गुमनाम हुई, तेरे मंजिल तक आने की !!

लब काँप रहे, मन भाँप रहे, दिल करता है अपने मन की !
हैरान रहूँ, बेचैन रहूँ, बातें सुनता मन से मन की !!

कुछ रोज लगे बीते बीते, पर बात नहीं अफ़साने की !
ये दिल भी पागल न समझे, जो बात नहीं समझाने की !!

अब टीस सी दिल में उठती है, उसके कोमल स्पर्शों की !
धड़कन भी मुझे डराती हैं, कहती हैं बारी जाने की !!

 हर कोशिश नाकाम हुई, तेरी दुनिया से जाने की !
 राहें भी गुमनाम हुई, तेरे मंजिल तक आने की !!



जितेन्द्र सिंह बघेल
25th जनवरी 2013

Tuesday 22 January 2013

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू !!!!!!!

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू ,
तेरे रहमों करम से मैं, घबरा गया !!

रह सकूँ गर तेरे दायरे में जो मैं,
खुद के साये से भी मैं तो घबरा गया !!

मेरे अपनों को अपना कहूँ जब भी मैं,
मेरा अपना कोई याद आता गया !!

ये ज़िन्दगी, कब जुदा होगी तू ,
तेरे रहमों करम से मैं, घबरा गया !!





जितेन्द्र सिंह बघेल
23 rd जनवरी 2013

Monday 21 January 2013

ये लोग दीवाने कैसे हैं

नज़रों से ओझल होते ही, पलकों के अन्दर होते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

सारे वादों से दूर गया, फिर यादों में क्यों आते हैं !
आँखों के निर्झर झरने में, वो अंतर्मन को धोतें हैं !!

उनकी दुनिया अब अलग हुई, फिर धड़कन में क्यों बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी यादों के पहलू कुछ, क्यों आज मुझी पे हँसते हैं !
तेरी किस्मत में यार नहीं, सब यही बोल के हँसते हैं !!

हैं मगर ऩाज खुद में मुझको, वो मेरे दिल में बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी इच्छाएं मरी नहीं, बस आत्मशुद्धि ही करते हैं !
ये जीवन भी क्षणभंगुर है, सब मरने से ही डरते हैं !!

सारे बंधन से मुक्त रहूँ, बस यही जतन हम करते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !
!




                                     जितेन्द्र सिंह बघेल 

                                             22 nd जनवरी 2013

Saturday 19 January 2013

यादों का मौसम

कुछ लम्हे हूँ जिया हुआ,  जिनकी यादें तडपाती हैं !
है बीते पल में जिंदा वो, बस यही याद कहलाती है !!

यादों का मौसम कैसा है, जो दूर कभी ना जाता है !
जब याद उसे मैं करता हूँ, मन दूर तलक यूँ जाता है !!

है बेबस सा लाचार बड़ा, मन को यादें समझाती हैं !
एक आश बची है मन में क्यों, आँखें  नम सी  हो जाती हैं !!

कुछ लम्हे हूँ जिया हुआ,  जिनकी यादें तडपाती हैं !
है बीते पल में जिंदा वो, बस यही याद कहलाती है !!



             जितेन्द्र सिंह बघेल 
            19 January 2013

Thursday 17 January 2013

तेरी यादें

मिलूं मैं गर जो राहों में, छुपा लेना खुदी को तुम !

मुझे मालुम है ये की, तड़प के रो पडोगी तुम !!

तेरी यादें भी आती हैं, बड़ी सिद्धत से यूँ जाना !

तुम्हे बतलाऊं मैं कैसे, उन्ही से लड़ पडोगी तुम !!

  

                                     जितेन्द्र सिंह बघेल  

                                      17 January 2013

 

Wednesday 9 January 2013

हकीकत की बयाँबाजी

कभी फ़ुरसत से पढना तुम, मेरी आँखों के अश्कों को !
जिन्हें लाये बिना आँखें, मेरी अब सो नहीं पाती !!

कभी ख्वाबों में आऊं तो, समझ लेना बुरा सपना !
हकीकत की बयाँबाजी, ये आँखें कह नहीं पाती !!

मुझे बाँधा है कसमों से, न जाने किस बहाने से !
मेरी हर बात भी अब तो, उसे समझा नहीं पाती !!

जितेन्द्र सिंह बघेल 

9th  जनवरी 2013

Wednesday 2 January 2013

ये रात बड़ी जहरी लगती

ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
ये सफ़र रात का लगता है, जैसे बिन पानी का सागर !
हर रात उसी में डूबे मन, पिछली सुध में खुद को पाकर !!
ये सफ़र रात का खोता है, कब आँख मेरी लग जातीं है !
जब सुबह में खुद को पाता हूँ, तब आँख मेरी भर आतीं हैं !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
है गुजर रहा जीवन ऐसे, जैसे जीना मजबूरी है !
है बात करूं कितनी उसकी, हर बातें अभी अधूरी हैं !!
हर हाल में तुझको जीना है, बस यही बात तडपाती है !
जाते - जाते वो यही कही, यह बात समझ नहीं आती है !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!


     जितेन्द्र सिंह बघेल   

2nd जनवरी 2013



।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...