हो सकूँ दिवालिया तो निकाल दूँ दीवाला तन्हाइयों का..
कमबख्त ये कुर्क नहीं, सुर्ख हुई जा रहीं हैं।
हर रोज़, हर पल एक बखेड़ा खड़ा रहता है इनका..
पल पल जिन्दगानियाँ अब इनके नाम हुई जा रहीं हैं॥
काश! हो जाऊं बेख़बर और कुछ करूं इनका...
मगर एक पल में ही, धड़कनें रुकी जा रहीं हैं।
हो सकूँ दिवालिया तो निकाल दूँ दीवाला तन्हाइयों का....
कमबख्त ये कुर्क नहीं, सुर्ख हुई जा रहीं हैं॥
जितेन्द्र शिवराज सिंह बघेल
3rd नवंबर 2019
No comments:
Post a Comment