Friday, 24 April 2020

।जय श्री राम।

तुम राम हो तुम धर्म हो, तुम ही दया का भान हो।
तुम पुत्र पति और पिता भाई, के प्रबल प्रमाण हो।।
ब्रह्मांड के भीतर या बाहर, हो सका कोई और ना।
हो जिसे सब धर्म संगत, आजतक कोई हुआ ना।।
ओज तुममें, तेज तुममें, तुम गुणों के खान हो।
तुम राम हो तुम धर्म हो, तुम ही दया का भान हो।।
है राम का बस नाम ऐसा, जो धरा को धरे है।
ब्रह्मण्ड को सिंचित करे जो, कष्ट सारे हरे है।।
शिव की समाधि में रहें, वो श्रेष्ठ तारक राम हो।
तुम राम हो तुम धर्म हो, तुम ही दया का भान हो।

आगे है..……..

जितेन्द्र शिवराज सिंह बघेल

रामायण जीवन का आधार, एक संकलन लेकर मैं राम को, उनके त्याग को उनके धर्म परायण होने को लेकर कुछ लिखने का प्रयास किया है आने वाले समय मे और लिखूंगा।

वर्तमान में रामानंद सागर कृत रामायण का पुनः प्रसारण सही मायनों में बहुत उत्तम कार्य है, जीवन की इस भागदौड़ में हम जैसे कई लोगों ने इस कृति को नही देखा था, रामायण पढ़ना अलग बात है अपितु उसे सचित्र देखना मानो ऐसा प्रतीत होता है जैसे सब कुछ सीधा अंतर्मन में उतर रहा है।

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