Wednesday, 25 September 2024

।।विरह वेदना।।

सोने का मृग चाहिए तो, विछड़न भी होगा जान प्रिये।
कर्तव्य परायण होना तो, उपहास का भान भी जान प्रिये।।
कुछ भी कहके जाये कोई, प्रतिउत्तर को भी खोज प्रिये।
वरना चढ़ने को अग्निवेदि में, तत्पर रहना तुम सीघ्र प्रिये।।
सीधी सीढ़ी अब नही रही, टेढ़ा होना भी सीख प्रिये।
खुद की ज्वाला में खूब जली, अब ज्वाला बन तू जला प्रिये।।
कपट, दंभ के बादल हैं, बरबस उनको बरसा तू प्रिये।
तेरी गर्जन में वो बल है, हरगिज़ इसको बिसरा न प्रिये।।
मरना अब रावण तेरे से, तू कूटनीति भी सीख प्रिये।
अब राम बिना भी जीवन है, इस जीवन को जीना है प्रिये।।

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
 26 सितंबर 2024

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।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...