Wednesday, 18 September 2024

आज की पीढ़ी का मर्म

देखता हूं कुछ नौजवानों को,
अक्सर उनकी टोपी उड़ जाया करती है रास्ते में।
थोड़ा आगे रोकते हैं, 
अपनी अजीब सी बाइक, 
की उठा सकें अपनी गिरी टोपी,
मगर रौंद जाता है कोई कमबख्त हरहजा उसे ।।
देखता हूं कईयों को सेल्फ (बिना किक मारे स्टार्ट होना) वाली रॉयल इनफील्ड में भी।
कभी रास्ते में हुई ख़राब तो पैर नहीं थाम पाते,
कौन समझाए इन झींगुरों को,
की बड़ा होना पड़ता है भारी भरकम को संभाल पाने के लिए।।
देखता हूं बीस लाख की मोटर कार वालों को भी।
बीस रुपए के टोल के लिए बकर करते,
उनको अपनी औकात से अपनी ही औकात में गिरते।।
जो छोटा है वो बड़ा होने का दावा किए जा रहा है,
क्या मसला है कि, खुद के जहर को दवा समझे जा रहा है।
मिलावट सी हो गई है हर नस्ल में अब,
किसे इस्तेमाल करें, किस पर विश्वास करें,
सब कुछ बस धोखा हुआ जा रहा है।।

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
सितंबर 2024

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