कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
हम जी रहे वो ज़िन्दगी, जिसका नहीं मकसद कोई !
हम ढूढते हैं जख्म क्यों, जिसके खुदी मरहम हैं हम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
है एक तारा आसमां का, जल रहा था शान से !
फिर आज क्यों तू बुझ गया, क्या लुट गयी तेरी सरम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
"01 अगस्त 2012"
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
हम जी रहे वो ज़िन्दगी, जिसका नहीं मकसद कोई !
हम ढूढते हैं जख्म क्यों, जिसके खुदी मरहम हैं हम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
है एक तारा आसमां का, जल रहा था शान से !
फिर आज क्यों तू बुझ गया, क्या लुट गयी तेरी सरम !!
कुछ वक़्त बैठो शांत हो, मन में करो कुछ मनन तुम !
क्यों हो रहे बेचैन से, क्यों हो रहे खुद में ही गुम !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
"01 अगस्त 2012"
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