मुझे चुपके से यूँ, छूना तेरा, क्यों याद आता है !
न जाने किन की बाहें अब, तुझे थामे हुए होंगी !!
कभी फिरदौस था मेरा, अभी परवाह करता है !
न जाने किन निगाहों से, उन्हें वो देखती होंगी !!
तसब्बुर भी हुआ दुश्मन, नहीं अब याद करता है !
न जाने किस की गलियों में, वो आहें भर रही होंगी !!
वो खुशबू आज भी ये दिल मेरा, महसूस करता है !
न जाने किस की बाँहों में, वो जा महक रही होंगी !!
ये दिल अब भी मेरा तनहा, मुसाफिर बन के बैठा है !
न जाने किन गुनाहों की, सजा वो पा रही होंगी !!
जितेंद्र सिंह बघेल
न जाने किन की बाहें अब, तुझे थामे हुए होंगी !!
कभी फिरदौस था मेरा, अभी परवाह करता है !
न जाने किन निगाहों से, उन्हें वो देखती होंगी !!
तसब्बुर भी हुआ दुश्मन, नहीं अब याद करता है !
न जाने किस की गलियों में, वो आहें भर रही होंगी !!
वो खुशबू आज भी ये दिल मेरा, महसूस करता है !
न जाने किस की बाँहों में, वो जा महक रही होंगी !!
ये दिल अब भी मेरा तनहा, मुसाफिर बन के बैठा है !
न जाने किन गुनाहों की, सजा वो पा रही होंगी !!
जितेंद्र सिंह बघेल
१७ अगस्त २०१२
No comments:
Post a Comment