Friday, 17 August 2012

गुनाहों की सजा !!!!

 मुझे  चुपके से यूँ, छूना तेरा, क्यों याद आता  है !
न जाने किन की बाहें अब,  तुझे थामे हुए होंगी !!
कभी फिरदौस था मेरा, अभी परवाह करता है !
न जाने किन निगाहों से, उन्हें वो देखती  होंगी  !!
तसब्बुर भी हुआ दुश्मन, नहीं अब याद करता है !
न जाने किस की गलियों में, वो आहें भर रही होंगी !!
वो खुशबू आज भी ये  दिल मेरा, महसूस करता है !
न जाने किस की बाँहों में, वो जा महक रही होंगी !!
ये दिल अब भी मेरा तनहा, मुसाफिर बन के बैठा है !
न जाने किन गुनाहों की,  सजा वो पा  रही होंगी !!
जितेंद्र सिंह बघेल 
१७ अगस्त २०१२

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