है सबक एक दुनिया, तू समझा नहीँ !
बातों बातों में खुदको, गँवाता गया !!
इतना उठ के भी हाँसिल, किया कुछ नहीँ !
चंद मतलब में, खुदको गीराता गया !!
सोंच अपनी अकेले कि, देखा नहीँ !
सारी दुनिया से नाता, निभाता गया !!
एक दिन कुछ हुआ, कोई जाना नहीँ !
चार कंधो में चढ़कर, विदा हो गया !!
प्रेम से बढ़के कुछ भी, हुआ ही नही !
सारी मेहनत तू यूँ ही, कमाता गया !!
आज़ जाने से तेरे, फरक भी नहीँ !
बेवजह यूँ ही, पशुओं सा जीता गया !!
🙏🙏🙏🙏🙏
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
30th नवम्बर 2015
Monday 30 November 2015
सबक !!!!!
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।। मेरे शहर में सब है ।।
मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...
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