बीते पल में, मैं आज जियूँ !
समझूँ क्या इसको पागलपन !!
हर दर्द को खुद मरहम समझूँ !
पाऊँ ग़ैरों में अपनापन !!
मैं लफ़्ज़ कहूँ या होंठ सिउँ !
अति विचलित है और कुंठित मन !!
किसको अपना या गैर कहूँ !
ये समझ न पाया अन्तर्मन !!
जितेन्द्र शिवराज सिंह बघेल
०५/०४ २०१६
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