Wednesday, 4 May 2016

बीते पल में, मैं आज जियूँ !

बीते पल में, मैं आज जियूँ  !
समझूँ क्या इसको पागलपन  !!

हर दर्द को खुद मरहम समझूँ ! 
पाऊँ ग़ैरों में अपनापन !!

मैं लफ़्ज़ कहूँ या होंठ सिउँ !
अति विचलित है और कुंठित मन !!

किसको अपना या गैर कहूँ !
ये समझ न पाया अन्तर्मन !!

जितेन्द्र शिवराज  सिंह बघेल 
०५/०४ २०१६ 
 

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