औकात गिरा ली अपनी ज़माने ने, वरना एक दौर था जब लफ्ज महँगे हुआ करते थे !
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
14th अप्रैल 2017
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।। मेरे शहर में सब है ।।
मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...
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पाठ - 14 " पाँच बातें " कक्षा - 4 1- हर एक काम इमानदारी से करो ! 2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो ! 3- अधिक...
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कभी कोख में तो, कभी चौक में मैं। क्यों मारी क्यों नोची, जली जा रही हूँ।। किसी रोज़ हो जाऊं, गी जग से ओझल। तो रहना अकेले, कहे जा रही हूँ।। ...
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कभी - कभी कुछ मजबूरियाँ आदत बन जाती हैं ! हम समझ ही नहीं पाते, कब वो इबादत बन जाती हैं !! दर्द तब होता है यारो, जब दुआ भी बददुआ बन जाती हैं...
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