तेरी रहमत गिरेगी कब, तुझे दर्खास्त करता हूँ !
तेरी रहमत की खातिर ही, मैं ये बकवास करता हूँ !!
न जाने क्यों दिया तुने, मुझे वो दर्द का सागर !
उसी में तैरता भी हूँ, उसी में डूबता भी हूँ !!
वो दिन मेरी मोहब्बत का, बड़ा मशहूर होता था !
कोई लौटा दे उस पल को, जिसे मैं याद करता हूँ !!
मुझे मालूम है तेरी, सभी वो फिक्रमंदियाँ !
तू करदे फिर से सब कुछ वो, जो मैं अरमान करता हूँ !!
तेरे दर पे झुका हूँ मैं, तेरी फितरत से वाकिफ हूँ !
नहीं अरमान है अब कुछ, तेरी दुनिया में आता हूँ !!
तेरी रहमत गिरेगी कब, तुझे दर्खास्त करता हूँ !
तेरी रहमत की खातिर ही, मैं ये बकवास करता हूँ !!
जितेन्द्र सिंह बघेल "5 जून 2012"
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