न उल्फ़त में जीना आया, न जिल्लत में मरना आया !
बड़ी कमबख्त हैं, ये दुनिया के रश्में,
न उन्हें रोना आया, न हमे रुलाना आया !!
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जितेन्द्र सिंह बघेल
17th जून 2013
मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...
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