क्यों फासले हमदर्द हैं, हमराह की अँखियों तले !
दिन रात हम रुसवा रहे, खुद के अँधेरे में जले !!.
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
15th जुलाई 2014
15th जुलाई 2014
मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...
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