Monday, 10 August 2015

मुझे पता नहीं !!

कभी जागते हुए सोता हूँ, कभी सोते हुए जगता हूँ....... 
इस हुनर को क्या नाम दूँ , मुझे पता नहीं !!
कभी सब होके, कुछ नहीं होता,
कभी कुछ नही होके सब होता है ..... 
इस एहसास को क्या नाम दूँ , मुझे पता नहीं !!
कभी आँखे खुली होते, कुछ देख नहीं पाता,
कभी शांत बैठे , कुछ सुन नहीं पाता …… 
इस मनःस्तिथी को क्या नाम दूँ , मुझे पता नहीं !!
कभी बहुत छोटी ख़ुशी , खुश कर जाती है,
कभी बहुत बड़ी भी , कम पड़ जाती है …
इस अंतरव्यथा को क्या नाम दूँ , मुझे पता नहीं !!
मैं जो कर रहा वो सही है , 
या जो सही है वो कर रहा .... 
क्या इसे ज़िन्दगी नाम दूँ , पता नहीं !!
♥♥♥♥
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
  10th अगस्त 2015 

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