मैं ग़मों को बेवकूफ़ बनाना सीख लिया, कहीं ऐसा तो नहीं की ज़िंदगी का तज़ुर्बा सीख लिया ! था बदतर अब बेहतर हो लिया, लगता है सच और झूँठ का अंतर समझ लिया !!
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
5th अप्रैल 2018
मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...
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