Sunday, 6 October 2024

।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ,
मेरा जगत विधाता मोहन...
सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है।
आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।
छोड़ सभी अब बाह्य द्वंद को, अंतरद्वंद का कर दो दोहन..
क्यों डरना जब हांक रहा रथ,
मेरा जगत विधाता मोहन...
पांच गांव की आश लिए, वो पांच पांडव भटके थे।
था क्या किसी कौरव को अनुभव, वो सब घमंड में अटके थे।।
जब जग छोड़े तो वो जोड़े, उसका विराट है सम्मोहन...
क्यों डरना जब हांक रहा रथ,
मेरा जगत विधाता मोहन...

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
 6th October 2024
            इंदौर 

Friday, 27 September 2024

।।पक्ष और विपक्ष।।

दोनो पक्षों में शामिल होकर, क्या हासिल कर पाओगे।
एक दिन ऐसा आएगा, कहीं नही रह पाओगे।।
होना चाहो रक्षित तुम तो, खुद का बेड़ा पार करो।
खुद से खुद के द्वंद से मानुष, जल्दी से तुम मुक्त करो।।
बर्बरीक से सीखो कुछ, क्यों कृष्ण ने उसका हाल किया।
कुछ सीखो कर्ण महादानी से, क्यों कृष्ण ने उसको वीर कहा।।
हरगिज़ रहना तत्पर तुम, सहने को निंदा बाणों को।
निंदक ही गढ़ते हैं तुमको, जीवन में आगे बढ़ने को।।
पर पक्ष विपक्ष के अंतर को, समझ बूझ के ही बढ़ना।
जिस कारण पशु से उपर हो, वो कर्म नित्य ही तुम करना।।


जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
   28 सितंबर 2024
      शुभ प्रभात 
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Wednesday, 25 September 2024

।।विरह वेदना।।

सोने का मृग चाहिए तो, विछड़न भी होगा जान प्रिये।
कर्तव्य परायण होना तो, उपहास का भान भी जान प्रिये।।
कुछ भी कहके जाये कोई, प्रतिउत्तर को भी खोज प्रिये।
वरना चढ़ने को अग्निवेदि में, तत्पर रहना तुम सीघ्र प्रिये।।
सीधी सीढ़ी अब नही रही, टेढ़ा होना भी सीख प्रिये।
खुद की ज्वाला में खूब जली, अब ज्वाला बन तू जला प्रिये।।
कपट, दंभ के बादल हैं, बरबस उनको बरसा तू प्रिये।
तेरी गर्जन में वो बल है, हरगिज़ इसको बिसरा न प्रिये।।
मरना अब रावण तेरे से, तू कूटनीति भी सीख प्रिये।
अब राम बिना भी जीवन है, इस जीवन को जीना है प्रिये।।

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
 26 सितंबर 2024

Wednesday, 18 September 2024

आज की पीढ़ी का मर्म

देखता हूं कुछ नौजवानों को,
अक्सर उनकी टोपी उड़ जाया करती है रास्ते में।
थोड़ा आगे रोकते हैं, 
अपनी अजीब सी बाइक, 
की उठा सकें अपनी गिरी टोपी,
मगर रौंद जाता है कोई कमबख्त हरहजा उसे ।।
देखता हूं कईयों को सेल्फ (बिना किक मारे स्टार्ट होना) वाली रॉयल इनफील्ड में भी।
कभी रास्ते में हुई ख़राब तो पैर नहीं थाम पाते,
कौन समझाए इन झींगुरों को,
की बड़ा होना पड़ता है भारी भरकम को संभाल पाने के लिए।।
देखता हूं बीस लाख की मोटर कार वालों को भी।
बीस रुपए के टोल के लिए बकर करते,
उनको अपनी औकात से अपनी ही औकात में गिरते।।
जो छोटा है वो बड़ा होने का दावा किए जा रहा है,
क्या मसला है कि, खुद के जहर को दवा समझे जा रहा है।
मिलावट सी हो गई है हर नस्ल में अब,
किसे इस्तेमाल करें, किस पर विश्वास करें,
सब कुछ बस धोखा हुआ जा रहा है।।

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
सितंबर 2024

।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...