मेरे मुकद्दर में कुछ गम और लिख दे मौला,
क्या पता, फिर ज़िन्दगी में उसका दीदार न हो !
ये उलफत में जीना बहुत हो गया,
कुछ ऐसा कर की, खुद पे ऐतबार न हो !!
है खुशबु आज भी उसकी, धडकती आज भी वो है,
फरक इतना है यारो अब, किसी की याद में है वो !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
24 जुलाई 2012
क्या पता, फिर ज़िन्दगी में उसका दीदार न हो !
ये उलफत में जीना बहुत हो गया,
कुछ ऐसा कर की, खुद पे ऐतबार न हो !!
है खुशबु आज भी उसकी, धडकती आज भी वो है,
फरक इतना है यारो अब, किसी की याद में है वो !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
24 जुलाई 2012
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