Monday 2 July 2012

तरक्कियों का दौर !!!!

तरक्कियों के दौर में, उसी का दौर चल गया !
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया !!
कहा तो बात कर रहा था, खेलने को आग से !
ज़रा सी आंच क्या लगी, की मोम सा पिघल गया !!
रख हौसला खुदी में तू, न सोँच जो बिगड़ गया !
तुझे भी क्या बतायेगा, जो पल अभी गुजर गया !!
है नियत भी गुलाम अब, करम तेरा प्रधान है !
बना दे ऐसा रास्ता, जहाँ  से तू गुजर गया !!
चले जहाँ, जहाँ सकल, बना दे ऐसा रास्ता !
डरे बिडम्बना भी अब, जिसे तुने कुचल दिया !!
तरक्कियों के दौर में, उसी का दौर चल गया !
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया !

      " जय हिंद "
  जितेन्द्र सिंह बघेल 
    02 जुलाई 2012

2 comments:

।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...