Thursday, 26 July 2012

वतन की आबरू !!!!

वो दिया क्यों बुझ गया, जो जल रहा था शान से,
आज क्यों है रो रहा, वतन मेरा ईमान से !!
क्यों बदल गया कोई, आईने घरों के सब,
क्या कोई बचा नहीं जो कह सके ईमान से !!
क्यों आबरू है लुट रही, लबों पे शब्द न रहे,
दिलों की  बात क्या करें, जो लुट गया है जान से !!
वो वक़्त एक था कोई, जहाँ थी हस्तियाँ कोई,
तो आज फिर क्यों डर रहा तू , अपनी ही जान से !!
क्यों हो गया गुलाम तू ,  आज एक बार फिर ,
तू आदमी नहीं रहा, बदल गया ईमान से !!
                                         जय हिंद - जय भारत 
                                           जितेन्द्र सिंह बघेल 
                                            26 जुलाई 2012

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।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...