जलता हूँ जज्बातों में, मत पूँछ मेरे अफसानो को !
हर मंजर मुझसे रूठा है, है जीवन जैसे जाने को !!
हर मंजर मुझसे रूठा है, है जीवन जैसे जाने को !!
हर किस्सा मेरा अपना ही, क्यों आज मुझी से पूंछे है !
है वक़्त बड़ा बेदर्दी सा, सब कुछ है जैसा खोने को !!
उन राहों में जब जाता हूँ, हर मंजर मुझसे कहता है !
क्यों आँखें तेरी नम सी हैं, तू चाहे जैसे रोने को !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
12th मार्च 2013
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