Wednesday, 5 September 2018

!!Jai Gurudev!!

तुम श्रेष्ठ मेरे, तुम देव मेरे, तुम सारे पद से ऊपर हो।
हम किंचित हैं, हम कुंठित हैं, तुम इन सबके उपचारक हो॥
हर व्यर्थ कर्म के रोधक थे, हर सत्य कर्म के साधक थे।
हूँ आज़ अगर मैं जैसा भी, गुरुदेव तुम्ही ही तारक थे॥
सारी जड़ता का अंत किया, तुमही मेरे संचालक हो।
हम किंचित हैं, हम कुंठित हैं, तुम इन सबके उपचारक हो॥
था शून्य और संकुचित बहुत, तुमने मेरी परिभाषा दी।
परिभाषित कर, प्रस्फ़ुटित किया, तुमने ही मेरी व्याख्या की॥
तुम राम मेरे, तुम श्याम मेरे, तुम ही कण कण मे व्यापक हो।
हम किंचित हैं, हम कुंठित हैं, तुम इन सबके उपचारक हो॥

  ॥ शिक्षक दिवस की सबको मंगल कामनाएँ ॥
🙏इस ब्रह्मांड के समस्त शिक्षक जनों को मेरा दंडवत🙏

Saturday, 16 June 2018

Happy Father's Day 2K18

बदलते वक्त में क़ायम, है जिनका हर हुनर अपना ।
खुदी की मंजिलें हैं ये, था ख़ुद का रास्ता अपना ॥
कई जिंदगानिया दीं हैं, कई किस्से दिये गहरे ।
हमारे रक्त की लाली में, इनके रंग हैं गहरे ॥

॥ पितृ दिवस की मंगल शुभकामनाएं ॥
       जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
             17th जून 2018

Sunday, 10 June 2018

॥ एक आँकलन ॥

वो हमसे पिछले 4 साल का हिसाब मांग बैठे,
जो 4 पीढियों से हमें लूटते आयें हैं !
ये कमबख्त कुर्सी भी क्या चीज़  है,
की सारे चोर एक साथ लड़ने आयें हैं !!
एक आँकलन...
॥ जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल ॥

Saturday, 12 May 2018

Happy Mother's Day -2018


अगनित द्वंदो को सहकर भी, अंतर्मन को जो शांत करें !
खुद धधक रही हो ज्वाला सी, फिर भी सबको शीतल करदे !!
हर दर्दों का लेखा जोखा, कैसे संचित कर रहती है !
कोई समझ भला कैसे सकता, अंदर वो क्या क्या रखती है !!
हर कर्म, धर्म का अवलोकन, मानो मेरा तू करती है !
हूँ कोषों तुझसे दूर मगर, हर पल तू मुझको दिखती है !!
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       जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
॥ मात्र दिवस की मंगल शुभकामनाएं ॥
          13th April 2018

Thursday, 10 May 2018

॥ ज़िंदगी ॥

ये जो ज़िंदगी है ना, आधी तो बंदगी में गुजार दी ।
कभी ऊपर वाले की, तो कभी नीचे वालों की ॥
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
    11th मई 2018

जब नींद ना आये तो कुछ लिखना चाहिये.....

Thursday, 26 April 2018

॥ ऐ ज़िंदगी ॥

ये ज़िंदगी, तू इतने कह कहे क्यों लगा रखी है,
तुझे बर्दाश्त नहीं, तुझसे रोज लड़ना झगड़ना मेरा !

कभी तू भी, दे दिया कर तवज्जो किसी काम का,
हर वक्त, हर दम बस एक नया पंगा होता है तेरा !!

तुझसे मोहब्बत तो नहीं हो सकती ये यकीन है,
हाँ, नफ़रत के क़ाबिल भी तो नहीं मिज़ाज तेरा !!

          जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
               (वाराणसी यात्रा )
              26th अप्रैल 2018

Tuesday, 24 April 2018

॥ कुछ रंगना चाहूँ ॥


कुछ रंगों से रंगना चाहूँ, कुछ रंगहीन सम्बन्धों को !
कुछ निर्मल जल लेना चाहूँ, धुलने को मैले चेहरों को !!

मर्यादित और प्रखर भी हूँ, हैं कई द्वंद्व बस कहने को !
हर व्यक्ति यहाँ क्यूँ बेबस है, है जीता बस है खाने को !!

व्यथा कहूँ या व्यथा सुनूँ, कोई खड़ा नहीं कह सुनने को! है मर्म बहुत ही मलिन मेरा, कोई लफ्ज़ नहीं अब कहने को !!

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   25th अप्रैल 2018

Friday, 20 April 2018

॥ वक्त ॥

बहुत सुलझा दिया है, वक्त ने हरकतें कर करके,
वरना एक वक्त था, की सारा वक्त गुजरता था हरकतों में !

जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   20th अप्रैल 2018

Wednesday, 4 April 2018

तज़ुर्बा

मैं ग़मों को बेवकूफ़ बनाना सीख लिया, कहीं ऐसा तो नहीं की ज़िंदगी का तज़ुर्बा सीख लिया ! था बदतर अब बेहतर हो लिया, लगता है सच और झूँठ का अंतर समझ लिया !!

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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
   5th अप्रैल 2018

Saturday, 24 February 2018

॥ मेरे मन की आवाज़ ॥

पुरुषार्थ और पुरुष के बीच एक घमासान क्यूँ चल रहा है भाई  ?
आप पुरुष हैं न !
फ़िर क्योँ बेवज़ह प्रदर्शन किया जा रहा !
अपनी विचारधारा, अपनी व्यक्तिगत भड़ास तो नहीँ हो सकती न, दोनो किसी भी रूप में एक दूसरे की पूरक या  समकक्ष भी तो नहीँ हैं ।
एक ऐसी हवा हमारे जोश मेँ क्योँ घुल रही है जो, बस बिना विचार किये, एक ऐसे लक्ष्य की ओर अग्रसर सी है, जिसे पाके भी सब कुछ खोने का भान होने वाला है। देश की नयी ऊर्जा को देश हित मे लगाना है, न की उसे खोना है।
सच के साथ, सच के पास, सच के लिये जीना ही सर्वश्रेष्ठ है, 
सबसे पहले देश, फ़िर समाज, फ़िर परिवार, फ़िर आप स्वयं ॥

मेरे मन की आवाज़ ........
॥ जितेन्द्र शिवराज सिँह बघेल ॥
     25th फ़रवरी 2018

॥ किसी के वाश्ते जीना ॥

किसी के वाश्ते जीना, किसी के वाश्ते मरना !
नहीँ होता नसीबों मे, यूँ मर मर के यूँ जीना !!

दफ़न होने से पहले ही, कफ़न की आरज़ू क्योँ थी !
कशिश वैसी अभी भी है, कशिश पहले भी जैसी थी !!

फरक इतना है बस आया, की तुझको पास हूँ पाया !
वफ़ा का वास्ता देकर, वफ़ा के पार मैं आया !!

किसी के वाश्ते जीना, किसी के वाश्ते मरना !
नहीँ होता नसीबों मे, यूँ मर मर के यूँ जीना !!

॥ जितेन्द्र शिवराज सिंह बघेल ॥
      25 th फ़रवरी 2018

।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...