कहीं से जा रहा था मैं ।
जो पहले थी मेरी मंजिल,
वहीं से जा रहा था मैं ।।
हजारों रास्ते तय कर,
निरंतर चल रहा हूं मैं ।
हजारों रास्ते जिनको,
बिछड़ कर रो रहा हूं मैं ।।
कहीं से आ रहा था मैं.......
यही चकिया है जीवन का,
यही अपना रहा हूं मैं ।
बहुत ही कम समय मे मैं,
अधिक सा खो रहा हूं मैं।।
कहीं से आ रहा था मैं.......
।।जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल।।
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