मेरा जगत विधाता मोहन...
सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है।
आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।
छोड़ सभी अब बाह्य द्वंद को, अंतरद्वंद का कर दो दोहन..
क्यों डरना जब हांक रहा रथ,
मेरा जगत विधाता मोहन...
पांच गांव की आश लिए, वो पांच पांडव भटके थे।
था क्या किसी कौरव को अनुभव, वो सब घमंड में अटके थे।।
जब जग छोड़े तो वो जोड़े, उसका विराट है सम्मोहन...
क्यों डरना जब हांक रहा रथ,
मेरा जगत विधाता मोहन...
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
6th October 2024
इंदौर