आज क्यों मुझे, मेरा बचपन याद आ रहा है !
मानो मेरे इस जले दिल को और जला रहा है !!
शर्म आती है मुझको, गुजरता हूँ जब !
कोई कहता है ये, की तू कहाँ जा रहा है !!
वो गलियां है मेरी, कहानी है कहती !
जहा से मेरा, ये बचपन आ रहा है !!
मुझे क्यों नहीं अब, बुलाता है बरगद !
वो यूँ ही मुझे बस, घूरे जा रहा है !!
शायद परेशां है, फितरत से मेरी !
इसी कसमकस से लड़ा जा रहा है !!
मेरे रोम होते, खड़े क्यों ही जाते !
मेरा ही जमीर, क्यों मुझे हिला रहा है !!
आज क्यों मुझे, मेरा बचपन याद आ रहा है !
मानो मेरे इस जले दिल को और जला रहा है !!
आज क्यों मुझे, मेरा बचपन ..................
जितेद्र सिंह बघेल
"16 मई 2012"
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