निकला था जमाने को बदलने, कब जमाने ने मुझी को बदल दिया !
मैं बैठा था एक दिन यूँ ही, की मेरी परछाई ने मुझ से ही सवाल कर दिया !!
तू क्यों आया इस जमाने में जहाँ, कातिल हैं सारे लोग,
करेंगे काम कुछ ऐसे, की खो देगा तू भी होश !!
मैं समझ ही नहीं पाया की, कैसे दूँ गिला इसको,
भले ही अब नुमाइश को, क्यों न लाये मुझको लोग !!
मैं आया था कुछ सपने सजाने, जमाने ने मुझे ही सजा दिया !
निकला था जमाने को बदलने, कब जमाने ने मुझी को बदल दिया !!
जितेंद्र सिंह बघेल
15 मई 2012
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