Sunday, 13 September 2015

सुकूँ सारा गवाँ बैठा !!

सुकूँ पाने की कोशिश में, सुकूँ सारा गवाँ बैठा !
न समझा आजतक जीना, जो मर मर के हैं जीते लोग !!
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कदम ठहरे नहीं मेरे, न थक के मैं  कभी बैठा !
न समझा आजतक कहना, जो छुप छुप के हैं कहते लोग !!
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नहीं किस्मत की है रहमत, या किस्मत से मैं लड़ बैठा !
कहीं सच ही न हो जाये, जिसे सह भी न पायें लोग !!
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सुकूँ पाने की कोशिश में, सुकूँ सारा गवाँ बैठा !
न समझा आजतक जीना, जो मर मर के हैं जीते लोग !!
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जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 

14th सितम्बर 2015 

2 comments:

।। जगत विधाता मोहन।।

क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...