Monday, 28 September 2015

बेसब्री का आलम !!!!

बेसब्री का आलम कुछ यूँ था यारो,  जिन रास्तों पे चले थे कभी, आज उनमें ही भटकने लगे !!!
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जितेंद्र शिवराजसिंह बघेल
29 सितम्बर 2015

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क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...