Thursday 3 September 2015

खुदा खुदगर्ज लगता है !!

कोई मंजर नहीं ऐसा, जो मुझको दे सुकूँ थोड़ा !
न जाने किस गली में वो, मुझे तकती खड़ी होगी !!
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अचानक याद में उसके, मचल जाता हूँ मैं थोड़ा !
सबर करना मेरे हमदम, वो दिल से कह रही होगी !!
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खुदा खुदगर्ज लगता है, रहम करता नहीं थोड़ा !
मगर फिर भी इबादत वो, खुदा की कर रही होगी !!
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सभी राहें हुई आशां, मगर फिर भी है डर थोड़ा  !
यही सज़दा खुदा से वो, दुआ में कर रही होगी !!
              🌹🌹🌹 
              ♥♥♥
          जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल 
                3 सितम्बर 2015 

2 comments:

  1. क्या खूब लिखा है आपने भाईसाहब !!

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।। मेरे शहर में सब है ।।

मेरे शहर में सब है, बस नही है तो, वो महक... जो सुबह होते ही, मेरे गांव के हर घर से आती थी। थोड़ी सोंधी, मटमैली, जो अंतर्मन में घुल जाती थी।।...