कोई मंजर नहीं ऐसा, जो मुझको दे सुकूँ थोड़ा !
न जाने किस गली में वो, मुझे तकती खड़ी होगी !!
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अचानक याद में उसके, मचल जाता हूँ मैं थोड़ा !
सबर करना मेरे हमदम, वो दिल से कह रही होगी !!
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खुदा खुदगर्ज लगता है, रहम करता नहीं थोड़ा !
मगर फिर भी इबादत वो, खुदा की कर रही होगी !!
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सभी राहें हुई आशां, मगर फिर भी है डर थोड़ा !
यही सज़दा खुदा से वो, दुआ में कर रही होगी !!
♥♥♥
जितेंद्र शिवराज सिंह बघेल
3 सितम्बर 2015
क्या खूब लिखा है आपने भाईसाहब !!
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