Monday, 21 January 2013

ये लोग दीवाने कैसे हैं

नज़रों से ओझल होते ही, पलकों के अन्दर होते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

सारे वादों से दूर गया, फिर यादों में क्यों आते हैं !
आँखों के निर्झर झरने में, वो अंतर्मन को धोतें हैं !!

उनकी दुनिया अब अलग हुई, फिर धड़कन में क्यों बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी यादों के पहलू कुछ, क्यों आज मुझी पे हँसते हैं !
तेरी किस्मत में यार नहीं, सब यही बोल के हँसते हैं !!

हैं मगर ऩाज खुद में मुझको, वो मेरे दिल में बसते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !!

मेरी इच्छाएं मरी नहीं, बस आत्मशुद्धि ही करते हैं !
ये जीवन भी क्षणभंगुर है, सब मरने से ही डरते हैं !!

सारे बंधन से मुक्त रहूँ, बस यही जतन हम करते हैं !
ये लोग दीवाने कैसे हैं, कोपल से कोमल होतें हैं !
!




                                     जितेन्द्र सिंह बघेल 

                                             22 nd जनवरी 2013

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