Wednesday, 9 January 2013

हकीकत की बयाँबाजी

कभी फ़ुरसत से पढना तुम, मेरी आँखों के अश्कों को !
जिन्हें लाये बिना आँखें, मेरी अब सो नहीं पाती !!

कभी ख्वाबों में आऊं तो, समझ लेना बुरा सपना !
हकीकत की बयाँबाजी, ये आँखें कह नहीं पाती !!

मुझे बाँधा है कसमों से, न जाने किस बहाने से !
मेरी हर बात भी अब तो, उसे समझा नहीं पाती !!

जितेन्द्र सिंह बघेल 

9th  जनवरी 2013

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