कभी फ़ुरसत से पढना तुम, मेरी आँखों के अश्कों को !
जिन्हें लाये बिना आँखें, मेरी अब सो नहीं पाती !!
कभी ख्वाबों में आऊं तो, समझ लेना बुरा सपना !
हकीकत की बयाँबाजी, ये आँखें कह नहीं पाती !!
मुझे बाँधा है कसमों से, न जाने किस बहाने से !
मेरी हर बात भी अब तो, उसे समझा नहीं पाती !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
9th जनवरी 2013
No comments:
Post a Comment