Wednesday 2 January 2013

ये रात बड़ी जहरी लगती

ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
ये सफ़र रात का लगता है, जैसे बिन पानी का सागर !
हर रात उसी में डूबे मन, पिछली सुध में खुद को पाकर !!
ये सफ़र रात का खोता है, कब आँख मेरी लग जातीं है !
जब सुबह में खुद को पाता हूँ, तब आँख मेरी भर आतीं हैं !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!
है गुजर रहा जीवन ऐसे, जैसे जीना मजबूरी है !
है बात करूं कितनी उसकी, हर बातें अभी अधूरी हैं !!
हर हाल में तुझको जीना है, बस यही बात तडपाती है !
जाते - जाते वो यही कही, यह बात समझ नहीं आती है !!
ये रात बड़ी जहरी लगती, जब ख्वाब में तू नहीं आती है !
ये आँख भी खुद से हैं कहतीं , क्या रात अभी भी बाकी है !!


     जितेन्द्र सिंह बघेल   

2nd जनवरी 2013



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