Wednesday, 19 December 2012

मेरी फितरत

हैं कशाने खूब पर, जाना मेरी फितरत नहीं !

हूँ मैं नाशाद आज जो, इसका उन्हें तो गम नहीं !!

खस्तगी मेरे जहन की, क्यों उन्हें दिखती नहीं !

कूचे मुझे  मेरे सफ़र की, क्यों मुझे दिखती नहीं !!

खुल्द से कम था नहीं तू, फिर मेरी माना  नहीं !

ये जिस्म अब तनहा बचा है, कुछ भी इसमें है नहीं !!



     जितेन्द्र सिंह बघेल
   19th दिसम्बर 2012

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