हैं कशाने खूब पर, जाना मेरी फितरत नहीं !
हूँ मैं नाशाद आज जो, इसका उन्हें तो गम नहीं !!
खस्तगी मेरे जहन की, क्यों उन्हें दिखती नहीं !
कूचे मुझे मेरे सफ़र की, क्यों मुझे दिखती नहीं !!
खुल्द से कम था नहीं तू, फिर मेरी माना नहीं !
ये जिस्म अब तनहा बचा है, कुछ भी इसमें है नहीं !!
जितेन्द्र सिंह बघेल
19th दिसम्बर 2012
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