इसके कई रूप हैं,
एक लड़की ....
एक बहेन ....
एक पत्नी ....
एक माँ ....
ममता का भण्डार है तू, कुछ कर्ज चुकाना चाहूँ मैं !
है अंतर्मन भी बड़ा दुखी, कैसे तुझको बतलाऊं मैं !!
तेरे सीने का दर्द मेरे, सीने में कैसे आएगा !
बस यही सोंच में पागल हूँ, कैसे खुद को सुलझाऊं मैं !!
-जितेन्द्र सिंह बघेल
26th दिसम्बर 2012
Tuesday, 25 December 2012
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।। जगत विधाता मोहन।।
क्यों डरना जब हांक रहा रथ, मेरा जगत विधाता मोहन... सब कुछ लुट जाने पर भी, सब कुछ मिल जाया करता है। आश बनी रहने से ही, महाभारत जीता जाता है।।...
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